सैनी भारत की एक योद्धा जाति है. सैनी, जिन्हें पौराणिक साहित्य में शूरसैनी के रूप में भी जाना जाता है, उन्हें अपने मूल
नाम के साथ केवल पंजाब और पड़ोसी राज्य हरियाणा, जम्मू और कश्मीर और हिमाचल प्रदेश में पाया जाता है. वे अपना उद्भव यदुवंशी सूरसेन वंश से देखते हैं, जिसकी उत्पत्ति यादव राजा
शूरसेन से हुई थी जो कृष्ण और पौराणिक पाण्डव योद्धाओं, दोनों के दादा थे. सैनी, समय के साथ मथुरा से पंजाब और आस-पास की अन्य जगहों पर स्थानांतरित हो गए.
प्राचीन ग्रीक
यात्री और भारत में राजदूत, मेगास्थनीज़ ने भी इसका परिचय सत्तारूढ़ जाति के रूप में दिया था तथा वह इसके वैभव के
दिनों में भारत आया था जब इनकी राजधानी मथुरा हुआ करती थी. एक अकादमिक राय यह भी
है कि सिकंदर महान के शानदार प्रतिद्वंद्वी प्राचीन राजा पोरस, इसी यादव कुल के थे. मेगास्थनीज़ ने इस जाति को सौरसेनोई के रूप में वर्णित किया है.
इससे स्पष्ट है कि
कृष्ण, राजा पोरस, भगत ननुआ, भाई कन्हैया और कई अन्य ऐतिहासिक लोग सैनी भाईचारे से संबंधित थे" डॉ. प्रीतम सैनी, जगत सैनी: उत्पत्ति आते विकास 26-04,
-2002, प्रोफेसर सुरजीत सिंह ननुआ, मनजोत
प्रकाशन, पटियाला, 2008
राजपूत से उत्पन्न
होने वाली पंजाब की अधिकांश जाति की तरह सैनी ने भी तुर्क-इस्लाम के राजनीतिक वर्चस्व के कारण मध्ययुगीन काल के दौरान
खेती को अपना व्यवसाय बनाया, और तब से लेकर आज तक वे
मुख्यतः कृषि और सैन्य सेवा, दोनों में लगे हुए हैं. ब्रिटिश काल के दौरान सैनी को एक सांविधिक कृषि जनजाति के रूप में और साथ ही साथ एक सैन्य वर्ग के रूप में सूचीबद्ध किया गया था.
सैनियों का पूर्व
ब्रिटिश रियासतों, ब्रिटिश भारत और स्वतंत्र
भारत की सेनाओं में सैनिकों के रूप में एक प्रतिष्ठित रिकॉर्ड है. सैनियों ने
दोनों विश्व युद्धों में लड़ाइयां लड़ी और 'विशिष्ट
बहादुरी' के लिए कई सर्वोच्च वीरता पुरस्कार जीते. सूबेदार जोगिंदर सिंह,जिन्हें 1962 भारत-चीन युद्ध
में भारतीय-सेना का सर्वोच्च वीरता पुरस्कार, परमवीर चक्र प्राप्त हुआ था, वे भी सहनान उप जाती के एक
सैनी थे. [36]
ब्रिटिश युग के दौरान, कई प्रभावशाली सैनी जमींदारों को पंजाब और
आधुनिक हरियाणा के कई जिलों में जेलदार, या राजस्व
संग्राहक नियुक्त किया गया था.
सैनियों ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में भी
हिस्सा लिया और सैनी समुदाय के कई विद्रोहियों को ब्रिटिश राज के दौरान कारवास में
डाल दिया गया, या फांसी चढ़ा दिया गया या
औपनिवेशिक पुलिस के साथ मुठभेड़ में मार दिया गया.
हालांकि, भारत की आजादी के बाद से, सैनियों ने सैन्य और
कृषि के अलावा अन्य विविध व्यवसायों में अपनी दखल बनाई. सैनियों को आज व्यवसायी, वकील, प्रोफेसर,सिविल
सेवक, इंजीनियर, डॉक्टर और
अनुसंधान वैज्ञानिक आदि के रूप में देखा जा सकता है. प्रसिद्ध
कंप्यूटर वैज्ञानिक, अवतार सैनी जिन्होंने इंटेल के
सर्वोत्कृष्ट उत्पाद पेंटिअम माइक्रोप्रोसेसर के डिजाइन और विकास का सह-नेतृत्व
किया वे इसी समुदाय के हैं. अजय बंगा, भी जो वैश्विक बैंकिंग दिग्गज मास्टर कार्ड के वर्तमान सीईओ हैं एक सैनी
हैं. लोकप्रिय समाचार पत्र डेली अजीत, जो दुनिया का
सबसे बड़ा पंजाबी भाषा का दैनिक अखबार है[ उसका स्वामित्व भी सैनी का है.
पंजाबी सैनियों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा अब
अमेरिका, कनाडा और ब्रिटेन आदि जैसे
पश्चिमी देशों में रहता है और वैश्विक पंजाबी प्रवासियों का एक महत्वपूर्ण घटक है.
सैनी, हिंदू और सिख, दोनों धर्मों को मानते हैं. कई
सैनी परिवार दोनों ही धर्मों में एक साथ आस्था रखते हैं और पंजाब की सदियों पुरानी
भक्ति और सिख आध्यात्मिक परंपरा के अनुरूप स्वतन्त्र रूप से शादी करते हैं.
अभी हाल ही तक सैनी कट्टर अंतर्विवाही क्षत्रिय थे और केवल चुनिन्दा जाती में ही शादी करते थे. दिल्ली स्थित उनका एक राष्ट्रीय स्तर का संगठन भी है जिसे सैनी राजपूत महासभा कहा जाता है जिसकी
स्थापना 1920 में हुई थी.
प्राचीन भारत के राजनीतिक मानचित्र में ऐतिहासिक
सूरसेन महाजनपद. सैनियों ने इस साम्राज्य पर 11 ई. तक राज किया (मुहम्मदन हमलों के
आरंभिक समय तक).
हरियाणा के दक्षिणी
जिलों में और उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान में भी 20वीं सदी में माली जाति के लोगों ने
"सैनी" उपनाम का उपयोग शुरू कर दिया. बहरहाल, यह पंजाब के यदुवंशी सैनियों वाला समुदाय नहीं है. सैनी ब्रिटिश पंजाब
(पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश,
जम्मू व कश्मीर) से बाहर कभी नहीं गए. यह इस तथ्य से प्रमाणित हुआ
है कि 1881 की जनगणना पंजाब से बाहर सैनी समुदाय के अस्तित्व को स्वीकार नहीं करती
है और इबेट्सन जैसे औपनिवेशिक लेखकों के आक्षेप के बावजूद, सैनी और माली को अलग समुदाय मानती है. 1891 की
मारवाड़ जनगणना रिपोर्ट ने भी राजपूताना में किसी 'सैनी' नाम के समुदाय को दर्ज नहीं किया है और केवल दो समूह को माली के रूप में दर्ज
किया है. जिनका नाम है महूर माली और राजपूत माली जिसमें
से बाद वाले को राजपूत उप-श्रेणी में शामिल किया गया है. राजपूत मालियों ने अपनी पहचान को 1930 में सैनी में बदल लिया लेकिन बाद की
जनगणना में अन्य गैर राजपूत माली जैसे माहूर या मौर ने भी अपने उपनाम को 'सैनी' कर लिया. पंजाब के सैनियों ने ऐतिहासिक
रूप से कभी भी माली समुदाय के साथ अंतर-विवाह नहीं किया (एक तथ्य जिसे इबेट्सन
द्वारा भी स्वीकार किया गया और 1881 की जनगणना में विधिवत दर्ज किया गया), या विवाह के मामले में वे सैनी समुदाय से बाहर नहीं गए,और यह वर्जना आम तौर पर आज भी जारी है. दोनों समुदाय, सामाजिक, सांस्कृतिक और भौगोलिक दृष्टि से भी
अधिकांशतः भिन्न हैं.