बद्री अहीर भारतीय
स्वतंत्रता आन्दोलन में सक्रिय रूप से भाग लेने वाले एक ऐसे गुमनाम चेहरा थे जिसे
भारतीय इतिहासकारों ने लगभग भुला ही दिया था | भला हो प्रभात खबर दैनिक
समाचार पत्र का, जिसने 29 मई 2017 के अपने कोलकता संस्करण में बद्री अहीर के बारे में छापकर
उन्हें भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन के इतिहास में अमर बना दिया |
दक्षिण अफ्रीका में
सत्याग्रह के दौरान एक बिहारी ने महात्मा गाँधी को एक हज़ार पौंड का कर्ज दिया था |
महात्मा गाँधी को कर्ज देने वाले शख्स का नाम था बद्री अहीर | बद्री मिस्टर पोलक
नहीं थे और न ही चंपारण के शुक्ल जी | वे दक्षिण अफ्रीका के अब्दुल्ला की तरह
कारोबारी भी नहीं थे | वह तो बिहार के अनाम सत्याग्रही थे |
उनका जन्म बिहार के
शाहाबाद जिला (अब भोजपुर) के जगदीशपुर थाना के अंतर्गत हेमतपुर गाँव में हुआ था | बद्री
अहीर दक्षिण अफ्रीका में महात्मा गाँधी के सत्याग्रह आन्दोलन में जेल के सजा भुगत
चुके थे और गाँधी जी जब 1917 में चंपारण पहुंचे तो वे दक्षिण अफ्रीका से गाँधी जी
का साथ देने यहाँ भी पहुँच गए |
26 जुलाई 1917 को
महात्मा गाँधी और उनके साथी बेतिया गए थे | उस दिन निलहे और मोतिहारी कोठी के
मालिक इरविन की गवाही हुई थी | गवाही दोपहर एक बजे तक चली | तब के कानपूर से छपने
वाले अख़बार ‘प्रताप’ ने 20 अगस्त, 1917 के अपने अंक में लिखा – महात्मा गाँधी के
साथ श्रीयुत बद्री अहीर भी थे, जो दक्षिण अफ्रीका के लड़ाई में उनके साथ शामिल थे |
महात्मा गाँधी ने
अपनी आत्म कथा में जिन महत्वपूर्ण लोगों को याद किया है, उनमें बद्री अहीर भी शामिल
है | गाँधी जी को जब अफ्रीका में निरामिषहारी गृह के लिए पैसों की जरुरत पड़ी, तो
पैसों के साथ बद्री खड़े थे | उन्होंने गांधीजी से कहा – भाई, इन पैसों का क्या ?
मैं कुछ नहीं जानता हूँ | मैं तो सिर्फ आपको जानता हूँ | बद्री जी के पैसे में से गांधीजी
ने हज़ार पौंड निरामिषहारी गृह के लिए ले लिए थे |
महात्मा गाँधी ने अमर
स्वतंत्रता सेनानी श्री बद्री अहीर को कुछ इस तरह याद किया है – यह मुवक्किल विशाल
ह्रदय का विश्वासी था | वह पहले गिरमिट में आया था | उसका नाम बद्री था | उसने
सत्याग्रह में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था | सत्याग्रह के लिए उसे जेल भी जाना पड़ा था
|
गांधीजी ने अपनी
आत्म-कथा में बद्री जी की चर्चा एक चरित्रवान हिन्दुस्तानी के रूप में की है |
बद्री अहीर ने गिरमिटिया लोगों के दुखों के निवारण एवं समाधान के लिए अपने साथियों
के साथ मिलकर एक मंडल की स्थापना की थी, जो स्वतंत्र व्यापारी वर्ग के मंडल से अलग
था | गांधीजी ने अपनी आत्मकथा में लिखा है की उस मंडल में कुछ बहुत शुद्ध ह्रदय के
उदार भावना वाले हिन्दुस्तानी थे | गांधीजी ने आगे लिखा है – बद्री से मेरा बहुत
गहरा परिचय हो गया था | उसने सत्याग्रह में सबसे आगे रहकर हिस्सा लिया | उन्होंने
ने एक आतिशय प्रिय नाम खोज लिया था | वे मुझे ‘भाई’ कहकर पुकारने लगे | दक्षिण
अफ्रीका में अंत तक मेरा यही नाम रहा | जब ये गिरमिट मुक्त हिन्दुस्तानी मुझे भाई
कहकर पुकराते थे, तब मुझे उसमे खास मिठास की अनुभूति होती थी |