अहीर देवायत बोदर
देवायत बोदर (सन 900 – 1025 ईo) :-
देवायत
बोदर एक महान योद्धा था, जो अपनी वीरता, बलिदान एवं मातृभूमि के प्रति अनन्यप्रेम के लिए जगप्रसिद्ध है | उन्होंने जूनागढ़ के चुडासमा राजा रा दियास के पुत्र का लालन-पालन किया था
तथा जूनागढ़ का राज्य सोलंकियों से छिनकर चुडासमा राजा रा दियास के पुत्र रा नवघन
को जूनागढ़ के सिहांसन पर पुनर्वापसी करवाया था |
गुजरात में एक कहावत
है "अहीर नो आसरो" जिसका मतलब है "अहीर का आश्रय या सहारा" | आड़े वक्त में जब किसी को कहीं भी ठिकाना नहीं
मिलता है तब वह अहीर की शरण में जाता है | इस का सबसे बड़ा
उदहारण है परम बलिदानी वीर अहीर देवायत बोदर |जूनागढ़ के राजपूत जब लड़ाई में मारे गये तो जूनागढ़ की रानी
ने अपने बच्चे को अहीरों की शरण में भेज दिया जिससे कि उस की जान बच जाए | शरणागत कि रक्षा का धर्म निभाते हुए वीर देवायत बोदर ने अपने पुत्र का
बलिदान दिया और अपनी तलवार के जोर पर नवघन राजपूत के प्राणों की रक्षा की |
देवायत बोदर का जन्म एक अहीर परिवार में जूनागढ़ के आडीदर बोडिदर नामक ग्राम में हुआ था| उनकी पत्नी का नाम सोनल बाई था | उनसे उनकी दो संतान
थी – पुत्र उगा एवं पुत्री जाहल |
चुडासमा राजा रा दियास जूनागढ़ के राजा
थे तथा ‘वामनस्थली’ उनकी राजधानी थी | जब पाटणपति राजा दुर्लभसेन सोलंकी ने छल से रा नवघन
के पिता चुडासमा राजा रा दियास से जूनागढ़ का राज्य छीन लिया और राजा रा दियास की
मौत हो गई तो रा' दियास की रानियों ने जौहर किया, लेकिन सोमलदे परमार
नाम की रानी सगर्भा थी, इसलिए वह किले से भाग कर
"नवघण" नामक एक पुत्र को जन्म देती है और उस
पुत्र को जीवित रखने हेतु अपनी वालबाइ नामकी दासी को पुत्र "नवघण" को
सोंपकर कहती है, " आडीदर बोडिदर गांव मे जाकर वहाँ
अहीर देवायत बोदर को कहना कि इस बालक को बड़ा करे और जुनागढ की गद्दी पर बिठाए |
रानी सोमलदे ने देवायत बोदर को धर्म भाई बनाया था | दासी छुपते-छुपाते बाल नवघण को आडीदर बोडिदर के अहीर देवायत के यहां ले
आती है और सोमलदे का संदेशा देती है | अहीर देवायत बोदर ने
नवघण को आहीराणी को सौंपा और कहा - भगवान मुरलीधर ने आज अपने को राजभक्ति दिखाने
का अवसर दिया है और आज से अपने तीन बालक है | देवायत बोदर ने
वचन दिया कि वह राजपुत्र कि रक्षा अपने प्राणों कि आहुति देकर भी करेगा | अहिराणी ने अपनी बेटी जाहल का दुध छुड़ा दिया और नवघण को स्तनपान कराया, तीनो बच्चे नवघण, देवायत का बेटा उगा और बेटी
जाहल को अहिराणी सोनलाबाई मां का प्यार देने लगी | रा’
नवघन एवं ऊगा दोनों हमउम्र थे | जब वे दोनों
12 साल के हुए तब किसी ने सोलंकी राजा को खबर दे दी कि चुडासमा
राजा रा दियास का पुत्र रा नवघन जिन्दा है और उसका लालन-पालन देवायत बोदर द्वारा
किया जा रहा है | देवायत बोदर को सोलंकी राजा ने राजदरबार
में बुलाया और उसे सूचना की सत्यता के बारे में पूछा | परिस्थिति
कि गंभीरता को भांपते हुए अहीर देवायत बोदर ने सच बोलना ही उचित समझा | सोलंकी राजा ने रा’ नवघन को राजदरबार में लाने को
कहा |
देवायत
बोदर ने कहा कि मैं घर पर पत्र लिख देता हूँ, अहिराणी को पत्र देते ही वे आपको नवघण सोंप देगी | देवायत
ने पत्र लिखा, अहिराणी, सोलंकियों
का जो शत्रु अपने घर पर इतने दिनो से पल रहा है, उसे इन
आये हुए राज सैनिकों के साथ भेज देना, रा' रखकर बात करना !
सौराष्ट्र और गुजरात की भाषा एक है
किंतु उनकी बोलने की शैली अलग है |
पत्र के अंत मे जो लिखा था "रा' रखकर
बात करना" उसका मतलब सैनिकों के साथ खुद देवायत का बेटा उगा को भेजना है, नवघण को नही भेजना है. सोलंकियों ने पत्र पढा पर उन्हे उस बात का पता नही
चला !
अहिराणी ने अपने खुद के बेटे उगा को
राजसी वस्त्र पहनाये, आभूषणो से सुसज्जित कर के सैनिकों के साथ भेज दिया | चुडासमा राजा रा दियास का पुत्र कौन है इसकी
पुष्टि करने के लिए सोलंकी राजा ने देवायत को आदेश दिया कि अपने हाथों से नवघण का
सर धड से अलग कर दे | देवायत ने ऐसा ही किया किन्तु इसे करते
वक्त अपने मुख पर एक भी दु:ख का भाव नही आने दिया | ताकि यह
साबित हो सके कि वह उसका बेटा ऊगा नहीं बल्कि रा’ नवघन था |
फिर भी सोलंकी राजा को संतोष नहीं हुआ | सोलंकियों
ने उस बात की पुनः पुष्टि करने हेतु अहिराणी सोनलबाई को राजदरबार
में बुलाया और उसे मृतक के माथे से आँखों को निकालकर आंखो पर से चलने को कहा |
यह एक बहुत ही क्रूर एवं कठिन परीक्षा था | फिर
भी राजपुत्र कि रक्षा के लिए अहिराणी ने अपने आंखो से
एक भी आंसु गिराए बिना उक्त कार्य को किया और यह साबित किया कि मरने वाला नवघण ही
था उसका पुत्र उगा नहीं | धन्य थी वह माँ और धन्य था वह पिता,
जिसने मातृभूमि के लिए अपने पुत्र का हँसते – हँसते
बलिदान कर दिया |
वीर देवायत ने अपनी बेटी जाहल का विवाह सासतीया
नाम के अहीर से किया | विवाह मे पुरे सौराष्ट्र के अहीर समाज
को आमंत्रित किया गया | देवायत ने आये हुए सभी मेहमानों को
राजदरबार में हुए घटना का सत्य बताया | उसने बताया कि उस दिन
जो सोलंकियों के हाथो मारा गया था वो मेरा बेटा ऊगा था, असली नवघण अभी जीवित है | नवघण की मां, मेरी धर्मबहन रोज मुझे सपनो में पूछती है कि नवघण को गद्दी पर बिठाने में
अभी कितना समय है? लेकिन अहीर भाइयों आज समय आ गया है |
आज जुनागढ का तख्त पलटेगा | आप सभी की सहायता
से मैं अपने पुत्र की मृत्यु का प्रतिशोध लुंगा | वहां
उपस्थित सभी अहीरों ने जाहल की शादी का आमंत्रण देने आये है ऐसा कहकर उपरकोट किले
में प्रवेश कर गये और योजना के अनुसार अंदर जाते ही सोलंकियों को संहार करने
लगे | नवघण अपने 'झपडा' नाम के घोड़े पर बैठ कर उपरकोट की दीवारों पर से तीरदांजी कर रहे सोलंकी
सैनिकों का नाश करने लगा | सोलंकियों को हार माननी पडी |
देवायत बोदर ने नवघण (इ.स.
1025-1044) को जूनागढ़ की गद्दी पर बैठाकर अपने रक्त से तिलक किया | रा’ नवघन ने भी जाहल के विवाह में एक भाई का हर फर्ज
अदा किया और बहन को कुछ भी मांगने को कहा | जमीन चाहिए तो
जमीन, पूरा राज्य चाहिए तो पुरा राज्य और अगर बहन को सर
चाहिए तो सिर दान भी दुंगा | मगर जाहल ने कहा : नही भाई
मुझे अभी कुछ नही चाहिए, कभी जरुरत पडी तो आप से मांग
लुंगी |
बलिदान की महानतम गाथा।
जवाब देंहटाएंशूरवीरों में अति शूरवीर - वीर अहीर
Jay ho ahir devayt aapa bodar ko Sat Sat namn or ahir Mata ko vandan 🙏 OR ahir ko riyast ki bhukh nhi thi verna junagadh ahiro ka tha
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