मौर्य काल
मगध राज्य की शक्ति महात्मा बुद्ध से पहले ही बहुत बढ़ने लगी
थी । पहले मगध राज्य की राजधानी राजगृह थी, लेकिन बाद में पाटलिपुत्र (पटना) मगध साम्राज्य की
राजधानी हुई । महात्मा बुद्ध के काल में मगध में शिशुनाग वंश का राज्य था ।
शिशुनाग वंश में बिम्बिसार और उसका पुत्र अजातशत्रु अत्यधिक शक्तिशाली व समृध्द
शासक थे ।
अजातशत्रु
अजातशत्रु ने अपने शासन-काल
में कोशल तथा काशी राज्य को भी जीत कर मगध साम्राज्य में शामिल कर
लिया । अजातशत्रु बहुत ही महत्वाकांक्षी एवं वीर राजा था । उसने लिच्छवियों के राज्य पर चढ़ाई की और
उसे जीतकर मगध राज्य में शामिल कर लिया । संभवतः शिशुनाग वंश के शासन काल तक शूरसेन राज्य ने अपनी स्वतन्त्र
सत्ता बनाये रखी । संभवत: अवंतिपुत्र के पश्चात उसके वंशजों का यहाँ पर शासन रहा ।
पाँचवी शती ई॰ के पूर्व काल में मगध पर नंदवंश का शासन हो गया ।
नंदवंश
नंदवंश का महापद्मनंद एक वीर और प्रतापी शासक था
। एक विस्तृत राज्य की महत्वाकांक्षा के कारण राजा महापद्मनंद ने समकालीन अनेक
छोटे-बडे़ स्वतन्त्र राज्यों को विजित कर अपने शासन में शामिल किया । इन सभी
विजयों के कारण राजा महापद्मनंद को पुराणों में `अखिल क्षत्रांतक' और 'एकच्छत्र' के रुप में वर्णित किया गया है ।
राजा महापद्मनंद ने मिथिला, कलिंग, काशी, पंचाल, चेदि, कुरु, आदि विभिन्न राज्यों को अपने शासन के अंतर्गत कर शूरसेन राज्य को भी जीत कर अपने विशाल राज्य में सम्मिलित किया । संभवत: ई॰ पूर्व 400के लगभग राजा महापद्मनंद का शासन रहा होगा ।
राजा महापद्मनंद ने मिथिला, कलिंग, काशी, पंचाल, चेदि, कुरु, आदि विभिन्न राज्यों को अपने शासन के अंतर्गत कर शूरसेन राज्य को भी जीत कर अपने विशाल राज्य में सम्मिलित किया । संभवत: ई॰ पूर्व 400के लगभग राजा महापद्मनंद का शासन रहा होगा ।
महापद्मनंद के पश्चात उसके
विभिन्न पुत्रों ने मगध राज्य पर शासन किया । उत्तरी- पश्चिमी भारत पर संभवतः ई॰
पूर्व 327 में सिकन्दर ने आक्रमण किया । परन्तु
सिकन्दर की सेना पंजाब से आगे न बढ़ सकी क्योंकि जब सिकन्दर की सेना को यह पता चला
कि आगे मगध शासक की विस्तृत सेना है तो सिकन्दर के सैनिकों ने व्यास नदी को पार कर आगे बढ़ने से मना
कर दिया ।
मौर्यवंश का अधिकार ई॰
पूर्व 325-185
चंद्रगुप्त मौर्य (ई॰ पूर्व
325-298 लगभग
चंद्रगुप्त ने सिकन्दर के
प्रशासक सेल्यूकस हो हरा कर उससे काबुल, हिरात, कन्दहार तथा मकरान के प्रदेशों पर विजय प्राप्त की । सिल्यूक्स ने
अपनी पुत्री हेलन का विवाह चंद्रगुप्त से किया और मेगस्थनीज नामक अपने राजदूत को मौर्य
दरबार में भेजा । मेगस्थनीज ने तत्कालीन भारत की राजनैतिक और सामाजिक दशा का
विस्तृत विवरण अपनी पुस्तक में किया है । चंद्रगुप्त के बाद उसका पुत्र बिंदुसार
[ई॰ पूर्व 298-272 लगभग] ने मगध साम्राज्य पर
शासन किया । बिंदुसार ने पश्चिमी एशिया, यूनान तथा मिस्त्र से मित्रवत संबंध स्थापित किये और इन देशों के साथ
प्रणिधि वर्ग का आदान-प्रदान किया ।
मौर्य शासकों के शासन-काल
में राज्य की उन्नति हुई । मौर्य शासकों ने यातायात की सुविधा तथा व्यापारिक
उन्नति के लिए अनेक बडी़ सड़कों का निर्माण करवाया । सबसे बड़ी सड़क पाटलिपुत्र से पुरुषपुर (पेशावर) तक जाती थी जिसकी लंबाई लगभग 1,850 मील थी । यह सड़क राजगृह, काशी, प्रयाग, साकेत, कौशाम्बी, कन्नौज, मथुरा, हस्तिनापुर, शाकल, तक्षशिला और पुष्कलावती होती हुई पेशावर जाती थी ।
मेगस्थनीज के अनुसार इस सड़क पर आध-आध कोस के अंतर पर पत्थर लगे हुए थे । मेगस्थनीज
संभवत: इसी मार्ग से होकर पाटलिपुत्र पहुँचा था । इस बडी़ सड़क के अतिरिक्त
मौर्यों के द्वारा अन्य अनेक मार्गों का निर्माण भी कराया गया ।
यूनानी राजदूत मैगस्थनीज
यूनानी राजदूत मैगस्थनीज बहुत वर्षों तक चंद्रगुप्त
और उसके पुत्र बिंदुसार के दरबारों में रहा ।
मैगस्थनीज ने भारत की राजनैतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक प्रवृत्तियों का विवरण किया , उसका बहुत ऐतिहासिक महत्व है । मूल ग्रंथ वर्तमान
समय में अनुपलब्ध है,
परन्तु एरियन नामक एक
यूनानी लेखक ने अपने ग्रंथ 'इंडिका' में उसका कुछ उल्लेख किया है । मैगस्थनीज के श्री कृष्ण, शूरसेन राज्य के निवासी, नगर और यमुना नदी के विवरण से पता चलता
है कि 2300 वर्ष पूर्व तक मथुरा और
उसके आसपास का क्षेत्र शूरसेन कहलाता था । कालान्तर में यह भू-भाग मथुरा राज्य
कहलाने लगा था । उस समय शूरसेन राज्य में बौद्ध-जैन धर्मों का प्रचार हो गया था
किंतु मैगस्थनीज के अनुसार उस समय भी यहाँ श्रीकृष्ण के प्रति बहुत श्रद्धा थी
मथोरा और क्लीसोबोरा
मैगस्थनीज ने शूरसेन के दो
बड़े नगर 'मेथोरा' और 'क्लीसोबोरा' का उल्लेख किया है । एरियन ने मेगस्थनीज के विवरण
को उद्घृत करते हुए लिखा है कि `शौरसेनाइ' लोग हेराक्लीज का बहुत आदर करते हैं । शौरसेनाई
लोगों के दो बडे़ नगर है- मेथोरा [Methora] और क्लीसोबोरा [Klisobora] उनके राज्य में जोबरेस* नदी बहती है जिसमें नावें
चल सकती है ।* प्लिनी नामक एक दूसरे यूनानी लेखक
ने लिखा है कि जोमनेस नदी मेथोरा और क्लीसोबोरा के बीच से बहती है ।[प्लिनी-नेचुरल
हिस्ट्री 6, 22] इस लेख का भी आधार
मेगस्थनीज का लेख ही है ।
टालमी नामक एक अन्य यूनानी लेखक
ने मथुरा का नाम मोदुरा दिया है और उसकी स्थिति 125〫और 20' - 30" पर बताई है । उसने मथुरा को देवताओं की नगरी कहा है
।* यूनानी इतिहासकारों के इन
मतों से पता चलता है कि मेगस्थनीज के समय में मथुरा जनपद शूरसेन [1] कहलाता था और उसके निवासी
शौरसेन कहलाते थे, हेराक्लीज से तात्पर्य श्रीकृष्ण से है । शौरसेन
लोगों के जिन दो बड़े नगरों का उल्लेख है उनमें पहला तो स्पष्टतःमथुरा ही है, दूसरा क्लीसोबोरा कौन सा नगर था, इस विषय में विद्वानों के विभिन्न मत हैं ।
जनरल एलेक्जेंडर कनिंघम
जनरल एलेक्जेंडर कनिंघम ने भारतीय भूगोल लिखते समय
यह माना कि क्लीसीबोरा नाम वृन्दावन के लिए है । इसके विषय में
उन्होंने लिखा है कि कालिय नाग के वृन्दावन निवास के कारण
यह नगर `कालिकावर्त' नाम से जाना गया । यूनानी लेखकों के क्लीसोबोरा का पाठ वे `कालिसोबोर्क' या `कालिकोबोर्त' मानते हैं । उन्हें इंडिका की एक प्राचीन प्रति में `काइरिसोबोर्क' पाठ मिला,
जिससे उनके इस अनुमान को बल
मिला ।* परंतु सम्भवतः कनिंघम का यह
अनुमान सही नहीं है ।
वृन्दावन में रहने वाले के
नाग का नाम, जिसका दमन श्रीकृष्ण ने किया, कालिय मिलता है ,कालिक
नहीं । पुराणों या अन्य किसी साहित्य में वृन्दावन की संज्ञा कालियावर्त या
कालिकावर्त नहीं मिलती । अगर क्लीसोबोरा को वृन्दावन मानें तो प्लिनी का कथन कि मथुरा और
क्लीसोबोरा के मध्य यमुना नदी बहती थी, असंगत सिद्ध होगा, क्योंकि वृन्दावन और मथुरा दोनों ही यमुना नदी के एक ही ओर हैं ।
अन्य विद्धानों ने मथुरा को 'केशवपुरा' अथवा 'आगरा ज़िला का बटेश्वर [प्राचीन शौरीपुर]' माना है । मथुरा और वृन्दावन यमुना नदी के एक ओर उसके दक्षिणी तट पर स्थित है जब कि मैगस्थनीज के विवरण के आधार पर 'एरियन' और 'प्लिनी' ने यमुना नदी दोनों नगरों के बीच में बहने का विवरण किया है । केशवपुरा, जिसे श्रीकृष्ण जन्मभूमि के पास का वर्तमान मुहल्ला मल्लपुरा बताया गया है, उस समय में मथुरा नगर ही था । ग्राउस ने क्लीसोवोरा को वर्तमान महावन माना है जिसे श्री कृष्णदत्त जी वाजपेयी ने युक्तिसंगत नहीं बतलाया है ।
कनिंघम ने अपनी 1882-83 की खोज-रिपोर्ट में क्लीसोबोरा के विषय में अपना मत बदल कर इस शब्द का मूलरूप `केशवपुरा'[2] माना है और उसकी पहचान उन्होंने केशवपुरा या कटरा केशवदेव से की है । केशव या श्रीकृष्ण का जन्मस्थान होने के कारण यह स्थान केशवपुरा कहलाता है । कनिंघम का मत है कि उस समय में यमुना की प्रधान धारा वर्तमान कटरा केशवदेव की पूर्वी दीवाल के नीचे से बहती रही होगी और दूसरी ओर मथुरा शहर रहा होगा । कटरा के कुछ आगे से दक्षिण-पूर्व की ओर मुड़ कर यमुना की वर्तमान बड़ी धारा में मिलती रही होगी ।* जनरल कनिंघम का यह मत विचारणीय है । यह कहा जा सकता है । कि किसी काल में यमुना की प्रधान धारा या उसकी एक बड़ी शाखा वर्तमान कटरा के नीचे से बहती रही हो और इस धारा के दोनों तरफ नगर रहा हो, मथुरा से भिन्न `केशवपुर' या `कृष्णपुर' नाम का नगर वर्तमान कटरा केशवदेव और उसके आस-पास होता तो उसका उल्लेख पुराणों या अन्य सहित्य में अवश्य होता ।
अन्य विद्धानों ने मथुरा को 'केशवपुरा' अथवा 'आगरा ज़िला का बटेश्वर [प्राचीन शौरीपुर]' माना है । मथुरा और वृन्दावन यमुना नदी के एक ओर उसके दक्षिणी तट पर स्थित है जब कि मैगस्थनीज के विवरण के आधार पर 'एरियन' और 'प्लिनी' ने यमुना नदी दोनों नगरों के बीच में बहने का विवरण किया है । केशवपुरा, जिसे श्रीकृष्ण जन्मभूमि के पास का वर्तमान मुहल्ला मल्लपुरा बताया गया है, उस समय में मथुरा नगर ही था । ग्राउस ने क्लीसोवोरा को वर्तमान महावन माना है जिसे श्री कृष्णदत्त जी वाजपेयी ने युक्तिसंगत नहीं बतलाया है ।
कनिंघम ने अपनी 1882-83 की खोज-रिपोर्ट में क्लीसोबोरा के विषय में अपना मत बदल कर इस शब्द का मूलरूप `केशवपुरा'[2] माना है और उसकी पहचान उन्होंने केशवपुरा या कटरा केशवदेव से की है । केशव या श्रीकृष्ण का जन्मस्थान होने के कारण यह स्थान केशवपुरा कहलाता है । कनिंघम का मत है कि उस समय में यमुना की प्रधान धारा वर्तमान कटरा केशवदेव की पूर्वी दीवाल के नीचे से बहती रही होगी और दूसरी ओर मथुरा शहर रहा होगा । कटरा के कुछ आगे से दक्षिण-पूर्व की ओर मुड़ कर यमुना की वर्तमान बड़ी धारा में मिलती रही होगी ।* जनरल कनिंघम का यह मत विचारणीय है । यह कहा जा सकता है । कि किसी काल में यमुना की प्रधान धारा या उसकी एक बड़ी शाखा वर्तमान कटरा के नीचे से बहती रही हो और इस धारा के दोनों तरफ नगर रहा हो, मथुरा से भिन्न `केशवपुर' या `कृष्णपुर' नाम का नगर वर्तमान कटरा केशवदेव और उसके आस-पास होता तो उसका उल्लेख पुराणों या अन्य सहित्य में अवश्य होता ।
प्राचीन साहित्य में मथुरा
का विवरण मिलता है पर कृष्णपुर या केशवपुर नामक नगर का पृथक् उल्लेख कहीं प्राप्त
नहीं होता । अत: यह तर्कसम्मत है कि यूनानी लेखकों ने भूलवश मथुरा और कृष्णपुर
(केशवपुर) को, जो वास्तव में एक ही थे, अलग-अलग लिख दिया है । लोगों ने मेगस्थनीज को
बताया होगा कि शूरसेन राज्य की राजधानी मथुरा केशव-पुरी है और भाषा के अल्पज्ञान
के कारण सम्भवतः इन दोनों नामों को अलग जान कर उनका उल्लेख अलग-अलग नगर के रूप में
किया हो । शूरसेन जनपद में यदि मथुरा और कृष्णपुर नामक दो प्रसिद्ध नगर होते तो
मेगस्थनीज के पहले उत्तर भारत के राज्यों का जो वर्णन साहित्य (विशेषकर बौद्ध एवं जैन ग्रंथो) में मिलता है, उसमें शूरसेन राज्य के मथुरा नगर का विवरण है ,राज्य के दूसरे प्रमुख नगर कृष्णपुर या केशवपुर का
भी वर्णन मिलता । परंतु ऐसा विवरण नहीं मिलता । क्लीसोबोरा को महावन मानना भी तर्कसंगत नहीं है [3]
अलउत्वी के अनुसार महमूद ग़ज़नवी के समय में यमुना पार आजकल के महावन के पास एक राज्य की राजधानी थी, जहाँ एक सुदृढ़ दुर्ग भी था । वहाँ के राजा कुलचंद ने मथुरा की रक्षा के लिए
महमूद से महासंग्राम किया था । संभवतः यह कोई पृथक् नगर नहीं था, वरन वह मथुरा का ही एक भाग था । उस समय में यमुना
नदी के दोनों ही ओर बने हुए मथुरा नगर की बस्ती थी[यह मत अधिक तर्कसंगत प्रतीत
होता है] । चीनी यात्री फ़ाह्यान और हुएन-सांग ने भी मथुरा नदी के दोनों
ही ओर बने हुए बौद्ध संघारामों का विवरण किया है । इस
प्रकार मैगस्थनीज का क्लीसोवोरा [कृष्णपुरा] कोई प्रथक नगर नहीं वरन उस समय के
विशाल मथुरा नगर का ही एक भाग था, जिसे अब गोकुल-महावन के नाम से जाना जाता है ।
इस संबंध में श्री कृष्णदत्त वाजपेयी के मत तर्कसंगत लगता है – "प्राचीन साहित्य में मधुरा
या मथुरा का नाम तो बहुत मिलता है पर कृष्णापुर या केशवपुर नामक नगर का पृथक्
उल्लेख कहीं नहीं प्राप्त होता है । अतः ठीक यही जान पड़ता है कि यूनानी लेखकों ने भूल से मथुरा और
कृष्णपुर [केशवपुर] को,
जो वास्तव में एक ही थे, अलग-अलग लिख दिया है । भारतीय लोगों ने मैगस्थनीज
को बताया होगा कि शूरसेन जनपद की राजधानी मथुरा केशवपुरी है । उसने उन दोनों नामों
को एक दूसरे से पृथक् समझ कर उनका उल्लेख अलग-अलग नगर के रूप में किया होगा । यदि
शूरसेन जनपद में मथुरा और कृष्णपुर नाम के दो प्रसिद्ध नगर होते, तो मेगस्थनीज के कुछ समय पहले उत्तर भारत के
जनपदों के जो वर्णन भारतीय साहित्य [विशेष कर बौद्ध एवं जैन ग्रंथो] में मिलते है, उनमें मथुरा नगर के साथ कृष्णापुर या केशवपुर का
भी नाम मिलता है ।
अशोक (असोक)
चंद्रगुप्त मौर्य के पश्चात उसके पुत्र बिंदुसार ने शासन किया। बिंदुसार का
उत्तराधिकारी अशोक (ई॰ पूर्व 272 -232 संभवतः) मौर्य सम्राटों में
सबसे प्रसिद्ध शासक हुआ । अशोक का शासन-काल भारतीय इतिहास में बड़ा प्रसिद्ध है ।
उसने अपने साम्राज्य की भौतिक समृद्धि करने के साथ उसकी अभूतपूर्व धार्मिक उन्नति
भी की थी। देश के मुख्य-मुख्य स्थानों में अशोंक ने बौद्ध स्तूपों का निर्माण कराया इसके समय
में बौद्ध
धर्म की बड़ी उन्नति हुई । उसके
काल में बौद्ध धर्म इस देश का राज धर्म हो गया था, जिसकी व्यापक प्रगति के प्रयत्न मगध सम्राट की ओर से किये थे।
अशोक ने बौद्ध धर्म की शिक्षाओं को राज्याज्ञाओं के रूप में देश के एक सिरे से
दूसरे सिरे तक शिलाओं और स्तंभों पर उत्कीर्ण कराया था ।
प्रसिद्ध है कि मथुरा में
यमुना-तट पर अशोक ने विशाल स्तूपों का निर्माण कराया। जब चीनी यात्री हुएन-सांग ई॰
सातवीं शती में मथुरा आया तब उसने अशोक के बनवाए हुए तीन स्तूप यहाँ देखे। इनका उल्लेख इस
यात्री ने अपने यात्रा-विवरण में किया है । भारत के बाहर भी उसने अपने धार्मिक राजदूतों
को भेज कर वहाँ बौद्ध धर्म का प्रचार किया था। बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए उसने
अपने पुत्र महेन्द्र और पुत्री संघमित्रा को लंका में भी भेजा था।
उपगुप्त
मथुरा का विख्यात बौद्ध
धर्माचार्य उपगुप्त था । सम्राट अशोक को बौद्ध धर्म का प्रचार करने और स्तूपादि को
निर्मित कराने की प्रेरणा धर्माचार्य उपगुप्त ने ही दी । जब भगवान् बुद्ध दूसरी
बार मथुरा आये ,तब उन्होंने भविष्य वाणी की और अपने प्रिय शिष्य आनंद से कहा कि कालांतर में यहाँ
उपगुप्त नाम का एक प्रसिद्ध धार्मिक विद्वान होगा, जो उन्हीं की तरह बौद्ध धर्म का प्रचार करेगा और उसके उपदेश से अनेक
भिक्षु योग्यता और पद प्राप्त करेंगे । इस भविष्यवाणी के अनुसार उपगुप्त ने मथुरा
के एक वणिक के घर जन्म लिया । उसका पिता सुगंधित द्रव्यों का व्यापार करता था ।
उपगुप्त अत्यंत रूपवान और प्रतिभाशाली था । उपगुप्त किशोरावस्था में ही विरक्त
होकर बौद्ध धर्म का अनुयायी हो गया था । आनंद के शिष्य शाणकवासी ने उपगुप्त को
मथुरा के नट-भट विहार में बौद्ध धर्म के 'सर्वास्तिवादी
संप्रदाय' की दीक्षा दी थी ।
वासवदत्ता का आख्यान
जब उपगुप्त युवा था, तब मथुरा की एक गणिका वासवदत्ता उसके रूप पर आसक्त हो गई थी किंतु उसने उस गणिका को सन्मार्ग की ओर
प्रेरित किया । बौद्ध ग्रंथों में वैशाली की
नगरवधू आम्रपाली भगवान बुद्ध द्वारा कृतार्थ हुई थी और
वासवदत्ता उपगुप्त द्वारा । मथुरा की वह गणिका उसी नाम की अवंतिकुमारी तथा वत्सराज
उदयन की प्रिय रानी वासवदत्ता से भिन्न और उसकी परवर्ती थी ।
मौर्य साम्राज्य की समाप्ति
मौर्य सम्राट अशोक मगध साम्राज्य का ही सर्वाधिक
प्रसिद्ध शासक नहीं था वरन् वह भारत वर्ष के महान सम्राटों में से एक था । ई॰.
पूर्व 232 में अशोक की मृत्यु के बाद क्रमश:
सात मौर्य शासक मगध साम्राज्य के अधिकारी हुए । इनके नाम पुराण आदि साहित्य में विभिन्न
रूपों में मिलते है । उसके पश्चात मगध पर जिन मौर्य सम्राटों ने
शासन किया, वे अपने पूर्वजों की अतुल कीर्ति और उनके विशाल
साम्राज्य की रक्षा करने में असमर्थ सिद्ध हुए । उनके काल में साम्राज्य
छिन्न-भिन्न होगा लगा और उसके कई भागों में स्वाधीन राज्य बन गये थे । फलस्वरूप अशोक के बाद ही मौर्य साम्राज्य
का ह्रास होने लगा ।
विंध्य के दक्षिण में आंध्र
(सातवाहन) वंश ने मौर्य सत्ता से मुक्त होकर अपना स्वतन्त्र
राज्य स्थापित कर लिया । इधर उत्तर-पश्चिम में बैक्ट्रिया के यूनानी राजाओं ने
आक्रमण शुरू किये । ई॰ पूर्व 190 के लगभग डिमेट्रियस ने भारत पर आक्रमण कर दिया
औरमौर्यवंश के अंतिम राजा वृहद्रथ से
साम्राज्य के उत्तर-पश्चिम का एक बड़ा भाग छीन लिया । इन तथा विविध आंतरिक झगड़ों
के कारण मौर्य शासन की नींव हिल गई । उत्तर-पश्चिमी सीमा पर फिर से यूनानियों ने
घुसपैंठ करना आरंभ किया,
और उनके एक सरदार डिमेट्रियस ने देश के उस भाग पर अधिकार
कर लिया था । विंध्याचल के दक्षिण का आंध्र प्रदेश सातवाहन वंशीय राजाओं के शासन में
चला गया ।
शूरसेन प्रदेश संभवतः तब तक मगध साम्राज्य के अंतर्गत ही था
। अंतिम मौर्य सम्राट वृहद्रथ के शासन काल में मगध में एक राज्यक्रांति हुई थी ।
उस क्रांति का कारण शासकीय अव्यवस्था के साथ ही साथ धार्मिक असंतोष भी था । अशोक
के समय से मौर्य सम्राटों ने परंपरागत वैदिक
धर्म के स्थान पर बौद्ध
धर्म को राजकीय प्रश्रय दिया था
। उसके कारण रूढ़िवादी ब्राह्मण तथा वैदिक और भागवत धर्मों के अनुयायी बड़े
असंतुष्ट थे । जैसे ही शासन में शिथिलता आई उन लोगों ने विद्रोह कर दिया । उसका
नेतृत्व मौर्य सम्राट वृहद्रथ के ब्राह्मण सेनापति पुष्पमित्र शुंग ने किया था । उसने विक्रम
पूर्व सं. 128 में वृहद्रथ को मार कर मगध साम्राज्य का शासन-सूत्र
सभाँल लिया था । इस प्रकार मौर्य शासन की समाप्ति हुई और शुंग शासन का आरंभ हुआ
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ यह नाम शत्रुघ्न के पुत्र शूरसेन के नाम पर पड़ा और लगभग
ई॰ सन् के प्रारंभ तक जारी रहा । इसके अनंतर जनपद का नाम उसकी राजधानी मथुरा
के नाम पर `मथुरा'
प्रचलित हो गया देखिए पीछे पृ0 14-5 तथा `मथुरा परिचय' पृ0
11-16 ।
- ↑ लैसन ने भाषा-विज्ञान के आधार पर क्लीसोबोरा का मूल
संस्कृत रूप `कृष्णपुर' माना है । उनका अनुमान है कि यह स्थान आगरा में रहा होगा
। (इंडिश्चे आल्टरटुम्सकुण्डे,
वॉन 1869,
जिल्द 1, पृष्ठ 127,
नोट 3 ।
- ↑ श्री एफ0 एस0 ग्राउज का अनुमान है कि यूनानियों का
क्लीसोबोरा वर्तमान महावन है,
देखिए एफ0 एस0 ग्राउज-मथुरा मॅमोयर (द्वितीय सं0, इलाहाबाद 1880),
पृ0
257-8 फ्रांसिस
विलफोर्ड का मत है कि क्लीसोबोरा वह स्थान है जिसे मुसलमान `मूगूनगर'
और हिंदू `कलिसपुर'
कहते हैं-एशियाटिक रिसचेंज (लंदन, 1799), जि0
5, पृ0
270। परंतु उसने यह नहीं लिखा है कि
यह मूगू नगर कौन सा है। कर्नल टॉड ने क्लीसोबोरा की पहचान आगरा ज़िले के
बटेश्वर से की है (ग्राउज,
वही पृ0 258)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें