सोमवार, 11 अगस्त 2014

Yadavas in Uttarpradesh - उत्तर प्रदेश में यादव

उत्तर प्रदेश

          उत्तर प्रदेश की धरती अत्यंत ही पवित्र है जहाँ भगवान श्री कृष्ण अवतरित हुए थे तथा अपनी लीलाएं किये थे | उत्तर प्रदेश की पावन भूमि मथुरा में ही श्री कृष्ण ने यदु वंश में जन्म लिया था और गोकुल एवं वृन्दावन में अपनी बाल्य लीलायें किये थे | पदम् पुराण में भगवान विष्णु कहते हैं – ‘हे अभिरों ! मैं द्वापर युग में देवकी के अष्टम पुत्र के रूप में तुम्हारे वंश में जन्म लूँगा |’
इतिहास
         सम्पूर्ण उत्तर प्रदेश पर यदुवंशियों ने किसी न किसी काल में शासन किया है | महाभारत काल में यदुपति कंस मथुरा का चक्रवर्ती राजा था | गोकुल पर नन्द बाबा का शासन था | श्रीकृष्ण के पिता तथा शूरसेन के पुत्र वसुदेव जी एक शक्तिशाली सामंत थे | चेदिराज शिशुपाल का शासन बुंदेलखंड पर था |
ईसा पूर्व छठी शताब्दी तक मथुरा पर शूरसेन महाजनपद का शासन था, जिसका उल्लेख ग्रीक यात्री मेगास्थनीज ने भी अपनी पुस्तक ‘इंडिका’ में किया था | शूरसेन महाजनपद उत्तरी-भारत का प्रसिद्ध जनपद था जिसकी राजधानी मथुरा में थी। विष्णु पुराण में शूरसेन के निवासियों को ही संभवत: शूर कहा गया है और इनका आभीरों के साथ उल्लेख है | श्री कृष्ण के दादा जी एवं पांडवों के नाना शूरसेन के नाम पर इस प्रदेश का नाम शूरसेन पड़ा | इसके वंशज सौरसैनी भी कहे जाते थे | सिकंदर का प्रतिद्वंदी पोरस भी सौरसैनी था | यह जनपद मत्स्य जनपद के पूर्व एवं यमुना नदी के पश्चिम में अवस्थित थी | इसके अंतर्गत उत्तरप्रदेश का ब्रज क्षेत्र, हरियाणा, राजस्थान एवं मध्यप्रदेश का ग्वालियर क्षेत्र आता था | पाणिनी के अष्टाध्यायी में मथुरा के अन्धक एवं वृष्णि वंश के लोगों को शूरसेन कहा गया है | कौटिल्य के अर्थशास्त्र में वृष्णियों का वर्णन संघ अथवा गणतंत्र के रूप में किया गया है | इसमें कहा गया है कि वृष्णि, अन्धक एवं यादवों के अन्य कुलों को मिलाकर एक संघ के स्थापना किया गया था तथा वसुदेव कृष्ण को संघ मुखिया कहा गया है | मेगास्थनीज के समय भी शूरसेन जनपद की राजधानी मथुरा में कृष्ण की पूजा की जाती थी |
चेदि महाजनपद - चेदि आर्यों का एक अति प्राचीन वंश है। ऋग्वेद की एक दानस्तुति में इनके एक अत्यंत शक्तिशाली नरेश कशु का उल्लेख है। ऋग्वेदकाल में ये संभवत: यमुना और विंध्य के बीच बसे हुए थे। पुराणों में वर्णित परंपरागत इतिहास के अनुसार यादवों के नरेश विदर्भ के तीन पुत्रों में से द्वितीय कैशिक चेदि का राजा हुआ और उसने चेदि शाखा का स्थापना की। चेदि राज्य आधुनिक बुंदेलखंड में स्थित रहा होगा और यमुना के दक्षिण में चंबल और केन नदियों के बीच में फैला रहा होगा। महाभारत के युद्ध में चेदि पांडवों के पक्ष में लड़े थे। छठी शताब्दी ईसा पूर्व के 16 महाजनपदों की तालिका में चेति अथवा चेदि का भी नाम आता है। चेदि लोगों के दो स्थानों पर बसने के प्रमाण मिलते हैं - नेपाल में और बुंदेलखंड में। इनमें से दूसरा इतिहास में अधिक प्रसिद्ध हुआ। मुद्राराक्षस में मलयकेतु की सेना में खश, मगध, यवन, शक हूण के साथ चेदि लोगों का भी नाम है।
     चेदी प्राचीन भारत के 16 महाजनपदों में से एक था। इसका शासन क्षेत्र मध्य तथा पश्चिमी भारत था। आधुनिक बुंदलखंड तथा उसके समीपवर्ती भूभाग तथा मेरठ इसके आधीन थे। शक्तिमती या संथिवती इसकी राजधानी थी। मध्य प्रदेश का ग्वालियर क्षेत्र में वर्तमान चंदेरी कस्बा ही प्राचीन काल के चेदि राज्य की राजधानी बताया जाता है। महाभारत में चेदि देश की अन्य कई देशों के साथ, कुरु के परिवर्ती देशों में गणना की गई है। कर्णपर्व में चेदि देश के निवासियों की प्रशंसा की गई है। महाभारत के समय इसकी राजधानी शुक्तिमती बताई गई है। खारवेल के हथिगुम्फा अभिलेख के अनुसार चेदि वंश के ही एक शाखा ने कालांतर में कलिंग साम्राज्य के स्थापना किये थे |
         प्रथम सदी में बुंदेलखंड पर अभीर वंश के ईश्वरसेन, शिवदत्त, मधुरीपुत्र आदि ने राज किया था | 845 ई. से 1070 ई. तक बुंदेलखंड पर कलचुरी वंश का शासन था, जो अपने को हैहय वंश के अधिपति कार्तवीर्य अर्जुन का वंशज मानते थे |
      इसके अतिरिक्त उत्तर प्रदेश में अनेक शक्तिशाली यादव सामंत हुए थे | महान कवि कालिदास ने रघुवंश में शूरसेन जनपदमथुरावृन्दावनगोवर्धन तथा यमुना का उल्लेख किया है इंदुमती के स्वयंवर में विभिन्न प्रदेशों से आये हुए राजाओं के साथ उन्होंने शूरसेन राज्य के अधिपति सुषेण का भी वर्णन किया है  मगध, अंसुअवंती, अनूपकलिंग और अयोध्या के बड़े राजाओं के बीच शूरसेन-नरेश की गणना की गई है। कालिदास ने जिन विशेषणों का प्रयोग सुषेण के लिए किया है उन्हें देखने से ज्ञात होता है कि वह एक प्रतापी शासक था, जिसकी कीर्ति स्वर्ग के देवता भी गाते थे और जिसने अपने शुद्ध आचरण से माता-पिता दोनों के वंशों को प्रकाशित कर दिया था| इसके आगे सुषेण की विधिवत यज्ञ करने वाला, शांत प्रकृति का शासक बताया गया है, जिसके तेज से शत्रु लोग घबराते थे। यहाँ मथुरा और यमुना की चर्चा करते हुए कालिदास ने लिखा है कि जब राजा सुषेण अपनी प्रेयसियों के साथ मथुरा में यमुना-विहार करते थे तब यमुना-जल का कृष्णवर्ण गंगा की उज्जवल लहरों-सा प्रतीत होता था 
अहिच्छत्रा :-
         यह स्थान बरेली नगर से २५ कि. मी. दक्षिण- पश्चिम में रामनगर के पास स्थित है। आंवला रेलवे स्टेशन से यह १० मील उत्तर दिशा की तरफ पड़ता है। इसकी स्थिति २८#ं ५' उ. अक्षांस तथा ७९#ं२५' पूर्वी देशांतर है।
          अहिच्छत्रा प्राचीन उत्तर पंचाल की राजधानी हुआ करती थी। कई प्राचीन साहित्यिक प्रमाणों, मुद्रा तथा अभिलेखों में इससे मिलते- जुलते तथा कुछ भिन्न नाम भी मिलते हैं, जैसे अघिच्छत्रा, अहिच्छत्र, अहिच्छेत्र, छत्रवती, संख्यावती, परिचक्रा, परिवक्रा आदि परिचक्रा और परिवक्रा नाम शतपथ ब्राह्मण में मिलते हैं। अहिच्छत्रा नगरी के नामकरण के कारणों का वैसे तो कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं मिलता है, लेकिन इस संदर्भ में कई मत प्रचलित है, जिनका उल्लेख इस प्रकार है :-
( १.) कहा जाता है कि इस नगरी को राजा आदि ने बनवाया था, जिसके नाम पर इसे आदि- कोट के नाम से जाना जाने लगा। एक दिन एक अहीर जाति का व्यक्ति जब किले की भूमि पर सोया हुआ था, तब उसके ऊपर एक नाग ने फण से छाया कर दी। पांडवों के गुरु द्रोणाचार्य ने जब यह दृश्य देखा, तब उन्होंने भविष्यवाणी की कि यह व्यक्ति एक दिन इस प्रदेश का राजा बनेगा। बाद में यह भविष्यवाणी सत्य साबित हुई। वह राजा बना। राजा बनने के बाद उसने एक दुर्ग ( कोट ) का निर्माण किया। उसी का नाम आदिकोट रखा। बाद में यही नाम बदलकर अहिच्छत्रा हो गया।

स्वतंत्रता आन्दोलन
      भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में यहाँ के यादवों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया | 1922 के गोरखपुर में हुए चोरी-चौरा आन्दोलन को कौन भुला सकता है, जिसमे अधिकतर दलित एवं पिछड़ी जाति के लोगों ने हिस्सा लिया था एवं इसका नेतृत्व भगवान अहीर ने किया था | जिसके लिए उन्हें फांसी की सजा मिली थी | चौधरी रघुबीर सिंह एक प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी थे| 1952 में प्रथम लोकसभा चुनाव में वे आगरा लोकसभा सीट से सांसद बने | वह प्रथम यादव सांसद थे |
संगठन
  उत्तर प्रदेश में यादव जाति की आबादी लगभग 20% है और ये सम्पूर्ण प्रदेश में बसे हुए हैं | यहाँ एटा, इटावा, फर्रुखाबाद, मैनपुरी, कन्नौज, नॉएडा, आजमगढ़, फ़ैजाबाद, इलाहाबाद और आगरा यादव बहुल जिले माने जाते हैं | यहाँ यादवों की अनेक शाखाएं एवं उपनाम है | जैसे – किस्नौत, मंझरौठ, घोसी, कमारिया, गौर या गौरिया, रावत, राउत, अहीर, चौधरी, यादव, सिंह, राय, पाल आदि |
यादव नेता चौधरी नेहाल सिंह, चौधरी गंगाराम, बाबुराम यादव और लक्ष्मी नारायण के सम्मिलित प्रयासों से उत्तर प्रदेश एवं दिल्ली में विभिन्न उप जातियों और शाखाओं में बंटे यादव संगठित होने लगे थे तथा 1908 में उन्होंने यादव सभा की स्थापना की | रेवारी राज परिवार के सदस्य राव मान सिंह ने 1908 में उर्दू में “अभीर यादव कुलदीपक” नामक पुस्तक प्रकाशित किया और उसे वितरित किया, जिसमे उन्होंने लिखा था की यादव, अहीर, गोप सभी क्षत्रिय यदु कुल के वंशज हैं | दूसरे समर्पित यादव कार्यकर्ता दलीप सिंह जी ने रेवारी से 1908 में “अहीर गज़ट” नामक पत्रिका का प्रकाशन किया था | वह आजीवन सामाजिक कार्यों में जुटे रहे | 1918 में उन्होंने संन्यास ले लिया तथा स्वामी कृष्णानन्द बन गए |  संयुक्त प्रान्त का मैनपुरी शहर अहीर संगठन का केंद्र था | चौधरी पद्मा सिंह, संदारपुर, इटावा, चौधरी कामता सिंह, मौरल, चौधरी श्याम सिंह, उराबर मैनपुरी  के नेतृत्व में एवं 50 हज़ार यादवो की उपस्थिति में 1910 में मैनपुरी में ‘अहीर यादव क्षत्रिय महासभा’ का गठन किया गया | जल्द ही इसकी गतिविधि संयुक्त प्रान्त के कासगंज, एटा, बरसाना, इटावा, समसाबाद, फर्रुखाबाद, शिकाहोबाद, मैनपुरी, अकबरपुर, कानपूर, इलाहाबाद और लखनऊ जिलों में फ़ैल गयी | 1912 में शिकोहाबाद में ‘अहीर क्षत्रिय विदद्यालय की स्थापना की गयी | अहीर यादव क्षत्रिय महासभा ने अनेक शाखाओं एवं उपजातियों में विभक्त यादवों को एक छतरी के नीचे लाने का काम किया | इसने यादव अहीर समाज में व्याप्त अन्धविश्वास, कुरीतियों तथा बाल विवाह जैसे सामाजिक कुप्रथाओं को मिटाने का काम किया तथा शिक्षा का अलख जगाने का कम किया | राव बलबीर सिंह ने यादवों को गो रक्षा एवं जनेऊ पहनने के लिए प्रेरित किया|  जिसके लिए बिहार के मुंगेर में यादवों का भूमिहारों एवं राजपूतों के साथ हिंसक झड़प भी हुई|
विट्ठल कृष्ण जी खेतकर ने 1924 में देश के अन्य गणमान्य यादवों के साथ मिलकर इलाहाबाद में अखिल भारतीय यादव महासभा का गठन किया| अखिल भारतीय यादव महासभा भारत सरकार से भारतीय सेना में यादव रेजिमेंट बनाने की मांग करती रही है| 1966 में अखिल भारतीय यादव महासभा का बैठक इटावा में किया गया| जिसमे मुलयम सिंह यादव स्वागत समिति के अध्यक्ष तथा रेवारी के राजा श्री राव बिरेन्द्र सिंह को सभापति चुना गया| चौधरी हरमोहन सिंह यादव जी ने भी यादव आन्दोलन में महती भूमिका निभाई | उन्हीं के सार्थक प्रयासों से मुलायम सिंह यादव जी के मुख्यमंत्रित्व काल में अखिल भारतीय यादव महासभा का स्थायी कार्यालय गाज़ियाबाद में बन सका | वर्तमान में उदय प्रताप सिंह अखिल भारतीय यादव महासभा के अध्यक्ष तथा सत्य प्रकश सिंह यादव इसके महासचिव हैं |
राजनीति
 समाजवादी नेता राम मनोहर लोहिया ने पिछड़ी जातियों में यादवों की राजनैतिक क्षमता को पहचाना और उन्होंने कांग्रेस के खिलाफ यादव, कुर्मी, कोयरी तथा मुस्लिम का एक गठजोड़ बनाने का प्रयास किया | उनका नारा था – ‘पिछड़ा पावै सौ में साठ’ | 1967 में उनके निधन पर जाट नेता चौधरी चरण सिंह ने इसी फार्मूले को अपनाया और उस गठजोड़ में जाट जाति को शामिल कर दिया | इस प्रदेश में सोशलिस्ट पार्टी एवं लोक दल के उन्नयन के साथ यादवों का भी राजनैतिक उन्नयन हुआ | चौधरी चरण सिंह ने 1967 में उत्तर प्रदेश में प्रथम गैर कांग्रेसी सरकार बनाई तथा माननीय मुलायम सिंह यादव को सहकारिता मंत्री बनाया | 1977 में राम नरेश यादव ने यूपी में जनता पार्टी की सरकार बनाई तथा 23.6.1977 से 27.2.1979 तक यहाँ के मुख्यमंत्री रहे | मुलायम सिंह यादव तीन बार इस प्रदेश के मुख्यमंत्री बने | वह प्रथम बार 2.12.1989 से 24.6.1991 तक, द्वितीय बार 4.12.1993 से 2.6.1995 तक तथा तीसरी बार 29.8.2003 से 12.5.2007 तक प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे | वर्तमान में अखिलेश यादव 15 मार्च, 2012 इस प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं |

            वर्तमान समय में मुलायम  सिंह यादव और उनके सुपुत्र अखिलेश यादव  ऐसे दो  महान व्यक्ति  हैं जिनका जिक्र आते ही यदुवंशियों का सीना  गर्व से फूल जता है. मुलायम सिंह यादव एक जाने माने सफल समाजवादी नेता है. उन्हें लोग प्यार से "नेताजी'"  कहते हैं. वे तीन बार उत्तर-प्रदेश के  मुख्यमंत्री तथा एक बार केंद्र में रक्षामंत्री रह चुके हैं. अपने पिताश्री के  पद-चिन्हों पर चलते हुए  अखिलेश यादव ने हाल ही  में हुए  उत्तर प्रदेश की विधान-सभा चुनाव में, युवा वर्ग के सहयोग से , अभूतपूर्व कारनामा कर दिखाया. विधान -सभा की 403  में 224 सीटें जीत कर उन्होंने सबको आश्चर्यचकित कर दिया.  15 मार्च, 2012 वे यदुकुल के दसवें मुख्यमंत्री बने. वे उत्तर प्रदेश के सबसे कम आयु वाले मुख्यमंत्री है. 

                 
उत्तर प्रदेश के प्रमुख यादव नेता –
1. मुलायम सिंह यादव- (जन्म: २२ नवम्बर १९३९) 


एक भारतीय राजनेता हैं, जो उत्तर प्रदेश के तीन बार मुख्यमंत्री व केंन्द्र सरकार में एक बार रक्षा मंत्री रह चुके हैं। वर्तमान में यह भारत की समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष है। मुलायम सिंह यादव का जन्म 22 नवम्बर 1939 को इटावा जिले के सैफई गाँव में मूर्ती देवी व सुघर सिंह के किसान परिवार में हुआ था। मुलायम सिंह अपने पाँच भाई-बहनों में रतनसिंह से छोटे व अभयराम सिंह, शिवपाल सिंह यादव, रामगोपाल सिंह यादव और कमला देवी से बड़े हैं। पिता सुघर सिंह उन्हें पहलवान बनाना चाहते थे किन्तु पहलवानी में अपने राजनीतिक गुरु नत्थूसिंह को मैनपुरी में आयोजित एक कुश्ती-प्रतियोगिता में प्रभावित करने के पश्चात उन्होंने नत्थूसिंह के परम्परागत विधान सभा क्षेत्र जसवन्त नगर से अपना राजनीतिक सफर शुरू किया।
राजनीति में आने से पूर्व मुलायम सिंह आगरा विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर (एम०ए०) एवं जैन इन्टर कालेज करहल (मैनपुरी) से बी० टी० करने के बाद कुछ दिनों तक इन्टर कालेज में अध्यापन कार्य भी कर चुके हैं।
सन् १९६० में जैन इण्टर कालेज, करहल (मैनपुरी) में आयोजित एक कवि सम्मेलन में उस समय के विख्यात कवि दामोदर स्वरूप 'विद्रोही' ने अपनी चर्चित रचना दिल्ली की गद्दी सावधान! सुनायी तो पुलिस का एक दरोगा मंच पर चढ़ आया और विद्रोही जी से माइक छीन कर बोला-"बन्द करो ऐसी कवितायेँ जो शासन के खिलाफ हैं।" उसी समय कसे (गठे) शरीर का एक लड़का बड़ी फुर्ती से वहाँ पहुँचा और उसने उस दरोगा को मंच पर ही उठाकर दे मारा[2]। विद्रोही जी ने मंच पर बैठे कवि उदय प्रताप सिंह से पूछा ये नौजवान कौन है तो पता चला कि यह मुलायम सिंह यादव है। उस समय मुलायम सिंह उस कालेज के छात्र थे और उदय प्रताप सिंह वहाँ प्राध्यापक थे।
बाद में यही मुलायम सिंह यादव जब उत्तर प्रदेश के मुख्य मन्त्री बने तो उन्होंने विद्रोही जी को उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान का साहित्य भूषण सम्मान प्रदान किया।

राजनीतिक जीवन

मुलायम सिंह 1967 में पहली बार विधान सभा के सदस्य चुने गये और मन्त्री बने. 1992 में उन्होंने समाजवादी पार्टी बनाई वे तीन बार क्रमशः 5 दिसम्बर 1989 से 24 जनवरी 1991 तक, 5 दिसम्बर 1993 से 3 जून 1995 तक और 29 अगस्त 2003 से 11 मई 2007 तक उत्तर प्रदेश के मुख्य मन्त्री रहे. इसके अतिरिक्त वे भारत सरकार में रक्षा मन्त्री भी रह चुके हैं।

2. अखिलेश यादव-  मुख्यमंत्री, उत्तर प्रदेश 
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अखिलेश यादव बेदाग छबिमृदुभाषी तथा प्रगतिशील विचारों वाले युवा नेता है.  जो 15 मार्च 2012  को उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री बने | उनका जन्म जुलाई, 1973 को उत्तर प्रदेश में  इटावा जिले के सैफई गाँव  में हुआ.  इनके पिता  का नाम मुलायम सिंह यादव  और माता का नाम मालती देवी है. इनका विवाह  1999  में डिम्पल यादव से हुआ. इनके  अदिति,  टीना और अर्जुन नाम वाले  तीन बच्चे  हैं.  इनके पिता एक जाने-माने  समाजवादी नेता हैं. भारतीय राजनीति  में उनका विशिष्ट स्थान है.   अखिलेश यादव की  प्रारंभिक शिक्षा  इटावा में तथा उच्च स्कूली शिक्षा मिलिटरी स्कूल धौलपुर राजस्थान से हुई.   इंजीनियरी में  स्नातक स्तर की पढाई मैसूर यूनिवर्सिटी  से  और आर्ट्स में  मास्टर डिग्री सिडनी यूनिवर्सिटी से उत्तीर्ण  किया.
अखिलेश यादव ने  वर्ष 2000 में   कन्नौज संसदीय क्षेत्र से मध्यावधि चुनाव जीत कर पहली बार लोकसभा में प्रवेश किया. तब से अब तक वे तीन बार लोक सभा के सदस्य चुने जा चुके हैं. वर्ष 2009 में अखिलेश जी ने कन्नौज और फिरोजाबाद दो संसदीय क्षेत्रो से जीत हासिल किया  परन्तु बाद में फिरोजाबाद  सीट से त्यागपत्र दे दिया और  कन्नौज लोकसभा सीट को कायम रखा.
अखिलेश जी  उत्साहित, तेजस्वी और सही सोच-वाले युवा नेता हैं. उत्तर प्रदेश के पिछड़ेपन को दूर करके  विकास के उच्च शिखर पर ले जाने की उनकी  तीव्र  इच्छा भी  हैं. धार्मिक एवं जातिगत भावनाओं  से दूर रहकर वे सभी युवक-युवातियों को उन्नति के शिखर पर ले जाना चाहते है. उन्हें भली-भाँति मालुम है  कि  यह शुभ कार्य समाज के हर वर्ग को समान दृष्टि से देखते हुए तथा  न्याय के मार्ग पर  चलकर ही संभव है. मुख्यमंत्री   प्रदेश के  सभी नागरिकों का नेता होता है न कि किसी वर्ग विशेष का.  अतः उनके इस महान कार्य  को  सफल  बनने के लिए समाज के हर वर्ग से सहयोग की आवश्यकता है.
   3.  चौधरी रघुबीर सिंह – स्वतंत्र भारत के प्रथम यादव सांसद, वह 1952 में आगरा लोकसभा क्षेत्र से सांसद बने, प्रखर स्वतंत्रता सेनानी एवं सामाजिक कार्यकर्ता |
   4.  रामसेवक यादव – जिस प्रथम यदुवंशी के ऊपर सर्वप्रथम डाक टिकट जारी हुआ वे है राम सेवक यादव | उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जनपद में जन्मे राम सेवक यादव ने अल्प आयु में ही राजनैतिक – सामाजिक मामलों में रूचि लेनी आरम्भ कर डी थी | वे लगातार दूसरी, तीसरी तथा चौथी लोकसभा के सदस्य रहे और लोक लेखा समिति के अध्यक्ष, विपक्ष के नेता एवं उत्तर प्रदेश विधानसभा के सदस्य रहे | इस समाजवादी नेता के राष्ट्र के प्रति उल्लेखनीय योगदान के लिए उनके सम्मान में 2 जुलाई 1997 को स्मारक डाक टिकट जरी किया गया |
    5.  चरणजीत सिंह यादव- प्रमुख यादव नेता
    6.  नाथू सिंह यादव – प्रमुख यादव नेता
   7.  स्व० चंद्रजीत यादव – पूर्व सांसद एवं पूर्व केन्द्रीय मंत्री, पिछड़ा वर्ग एवं सामाजिक न्याय के योद्धा
   8.  रामनरेश यादव – पूर्व मुख्यमंत्री एवं मध्यप्रदेश के वर्तमान राज्यपाल
   9.  महीपाल शास्त्री – पूर्व सांसद एवं गुजरात के राज्यपाल
  10.  स्व० चौधरी हरमोहन सिंह यादव – (जन्म- 1921, कानपूर), पूर्व राज्यसभा सदस्य, 1980 एवं 2007 में अखिल भारतवर्षीय यादव महासभा के अध्यक्ष बने | उन्ही के सार्थक प्रयासों से मुलायम सिंह यादव जी के मुख्यमंत्रित्व काल में गाज़ियाबाद में अखिल भारतवर्षीय यादव महासभा का स्थायी कार्यालय (कृष्ण भवन) बन सका |
   11.  उदय प्रताप सिंह –  (जन्म: 1932मैनपुरी) वह एक कवि, साहित्यकार तथा राजनेता हैं। उन्होंने उत्तर प्रदेश से वर्ष 2002-2008 के लिये समाजवादी पार्टी की ओर से राज्य सभा का प्रतिनिधित्व किया | उदय प्रताप सिंह को उनकी बेवाक कविता के लिये आज भी कवि सम्मेलन के मंचों पर आदर के साथ बुलाया जाता है। साम्प्रदायिक सद्भाव पर उनका यह शेर श्रोता बार-बार सुनना पसन्द करते हैं | वे वर्तमान में उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान के कार्यकारी अध्यक्ष पद पर आसीन हैं तथा अखिल भारतवर्षीय यादव महासभा के अध्यक्ष हैं |
   12.  मित्रसेन यादव – पूर्व सांसद
   13.  डी. पी. यादव – पूर्व सांसद
   14.  कैलाश नाथ सिंह यादव- पूर्व सांसद
   15.  रामगोपाल यादव – राज्यसभा सांसद, सपा 
   16.  धर्मेन्द्र यादव – लोकसभा सांसद, बदायूं, सपा 

   17.  श्री मति डिम्पल यादव – लोकसभा सांसद, कन्नौज, सपा 
   18.  रमाकांत यादव – पूर्व लोकसभा सांसद – भाजपा
   19.  दर्शन सिंह यादव – राज्यसभा सांसद – सपा
   20.  अम्बिका चौधरी – राजस्व मंत्री , उत्तर प्रदेश सरकार
   21.  पारसनाथ यादव – कैबिनेट मंत्री, उत्तर प्रदेश सरकार, खाद्य प्रसंस्करण एवं बागवानी विभाग
  22.  शिव पाल सिंह यादव - कैबिनेट मंत्री, पी. डब्लू. डी., जल संसाधन, सिंचाई विभाग, उत्तरप्रदेश सरकार
   23.  बलराम यादव - कैबिनेट मंत्री, जेल विभाग, उत्तरप्रदेश सरकार
   24.  दुर्गा प्रसाद यादव - कैबिनेट मंत्री, उत्तरप्रदेश सरकार, परिवहन विभाग
   25.  शिवलाल यादव – पूर्व सांसद
   26.  देव नंदन प्रसाद यादव – पूर्व केन्द्रीय मंत्री
27. श्री नरेन्द्र सिंह यादव (सपा) – होम गार्ड विभाग, राज्य मंत्री
28. श्री शिवप्रताप यादव (सपा) – पशु पार्क विभाग, राज्य मंत्री

29. श्री अरविन्द गोप (सपा) – ग्रामीण विकास, राज्यमंत्री
30. अक्षय यादव, सांसद फिरोजाबाद, उत्तरप्रदेश, सपा


31. तेज प्रताप यादव- सांसद, मैनपुरी, सपा





अभिनय एवं गायन

1.    राजपाल यादव – हास्य अभिनेता
2.    दिनेश लाल यादव ‘निरहुआ’ – लोकप्रिय भोजपुरी अभिनेता
3.    स्व० बालेश्वर यादव- मशहूर बिरहा और लोक गायक | उनका जन्म 1 जनवरी 1942 को आजमगढ़ जिले के मधुबन कसबे में हुआ था | 1995 में उन्हें उत्तर प्रदेश सरकार ने ‘यश भारती सम्मान’ से सम्मानित किया |  09 जनवरी 2011 को उन्होंने अंतिम साँस ली |
4.    पूनम यादव – टीवी चैनल शो ‘सा रे गा मा’ से लोकप्रिय हुई |
5.    ओमप्रकाश यादव – बिरहा गायक

खेल
  1.      ज्योति यादव- क्रिकेट 
  2.      जे. पी. यादव- क्रिकेट
  3.      नरसिंह यादव – कुश्ती
  4.     रामसिंह यादव – लम्बी दुरी के धावक
  5. पूनम यादव - भारोतोलन
 6. कुलदीप यादव (कानपूर) - क्रिकेट, भारत के प्रथम चाइनामैन गेंदबाज 


अध्यात्म
   1.      बाबा जय गुरुदेव- यदुकुल शिरोमणि महान आध्यात्मिक संत, जन्म – इटावा, उत्तराधिकारी – पंकज यादव |
साहित्य
    1.      राजेंद्र यादव – यदि भारत में आज हिन्दी साहित्य जगत के मूर्धन्य विद्वानों का नाम लिया जाये तो सर्वप्रथम राजेन्द्र यादव का नाम सामने आता है।  कविता से शुरुआत करने वाले राजेन्द्र यादव आज अन्य विधाओं में भी निरंतर लिख रहे हैं। राजेन्द्र यादव ने बड़ी बेबाकी से सामंती मूल्यों पर प्रहार किया और दलित व नारी विमर्श को हिन्दी साहित्य जगत में चर्चा का मुख्य विषय बनाने का श्रेय भी उनके खाते में है। कविता में ब्राह्मणों का बोलबाला पर भी वे बेबाक टिप्पणी करने के लिए मशहूर है। मात्र 13-14 वर्ष की उम्र में जातीय अस्मिता का बोध राजेन्द्र यादव को यूं प्रभावित कर गया कि उस उम्र में 'चंद्रकांता’ उपन्यास के सारे खण्ड वे पढ़ गये और देवगिरी साम्राज्य को लेकर तिलिस्मी उपन्यास लिखना आरंभ कर दिया। दरअसल देवगिरी दक्षिण में यादवों का मजबूत साम्राज्य माना जाता था। साहित्य सम्राट प्रेमचंद की विरासत व मूल्यों को जब लोग भुला रहे थे, तब राजेन्द्र यादव ने प्रेमचंद द्वारा प्रकाशित पत्रिका 'हंस’ का पुनप्र्रकाशन आरम्भ करके साहित्यिक मूल्यों को एक नई दिशा दी। आज भी 'हंस’ पत्रिका में छपना बड़े-बड़े साहित्यकारों की दिली तमन्ना रहती है न जाने कितनी प्रतिभाओं को उन्होंने पहचाना, तराशा और सितारा बना दिया, तभी तो उन्हें हिन्दी साहित्य का 'द ग्रेट शो मैन’ कहा जाता है।
   2.      ललई सिंह यादव – (जन्म – कानपूर देहात, 1 सितम्बर 1911 – 7 फरवरी 1993 ) उन्हें उत्तर भारत का पेरियार कहा जाता है |
   3.      बिरेन्द्र यादव – समालोचक
   4.      कृष्ण कुमार यादव- भारतीय डाक सेवा के अधिकारी एवं युवा साहित्यकार
   5.      आकांक्षा यादव - कृष्ण कुमार यादव की पत्नी व युवा साहित्यकार
   6.      रघुबीर सिंह यादव – झाँसी के शिक्षक

भारतीय प्रशासनिक सेवा के वर्तमान अधिकारी
(यूपी कैडर के अधिकारी – 2013 के सूची अनुसार)
1.      राजीव यादव
2.      अजय यादव
3.      सुनील कुमार यादव
4.      पंकज यादव
5.      डॉ. अनूप कुमार यादव
6.      राजेश कुमार यादव
7.      अरुण यादव
8.      प्रदीप यादव
9.      धर्मेन्द्र प्रताप यादव
10.   संतोष कुमार यादव
11.   राम मोहन यादव
12.   पंधारी यादव
13.   अनुराग यादव
14.   प्राण जाल यादव
15.   सुशिल कुमार यादव
16.   इंद्रवीर सिंह यादव
17.   पुनीत यादव
18.   डॉ. अश्विनी कुमार यादव
19.   अरविन्द देव
20.   विवेक यादव
21.   चंदेश कुमार यादव
22.   सुबोध यादव 
23.   अमित यादव



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