केरल
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, यादव वंश के लोग
अगस्त्य ऋषि के साथ द्वारिका से केरल आये | कहा जाता है की एक समय केरल के तट पर
समुद्री दानवों ने आतंक मचा रखा था तथा वे यज्ञ प्रेमी ब्राह्मणों की हत्या कर रहे
थे, उन दानवों के आतंक से त्राण दिलवाने के लिए अगस्त्य मुनि द्वारिका से 18 प्रमुख यादव वीरों को लेकर केरल आये | उन यादव
वीरों ने उन समुद्री दैत्यों का नाश कर वहां के निवासियों की रक्षा की | तदुपरांत
अगस्त्य मुनि ने समुद्र के स्वामी वरुण देव से उन यादव वीरों के रहने के लिए भूमि
मांगी, जिसके फलस्वरूप समुद्र अपने स्थान से पीछे हट गया | यही भूमि कालांतर में
केरल कहलायी तथा केरल के स्थानीय यादव उन्हीं यादव वीरों के वंशज माने जाते हैं |
केरल के यादव मणियानी, कोलया, एरुवान तथा एरुमकार
के नाम से भी जाने जाते हैं | मलयालम भाषा ने ‘एरुमा’ का अर्थ भैंस तथा ‘एरुम्कार”
का अर्थ भैंस पालने वाला होता है | मणियानी क्षत्रिय नैयर जाति की एक उप
जाति है| मणियानी समुदाय मंदिर निर्माण कला में निपुण माने जाते हैं| मणि (घंटी)
एवं अणि (छैनी) के उपयोग के कारण, जो मंदिर निर्माण हेतु मुख्य उपकरण है , ये
मणियानी कहलाये | दूसरी मान्यता के अनुसार, भगवान श्री कृष्ण के स्यमंतक मणि के
कारण इन्हें मणियानी कहा जाता है| अन्य मान्यताओं के अनुसार यदुकुल में जन्म लेने
के कारण ये ‘यदुमणि’ कहलाते हैं|
यादवों
को यहाँ आयर, मायर तथा कोलायण भी कहा जाता है| केरल के यादवों को व्यापक रूप से
नैयर, नायर एवम उरली नैयर भी कहा जाता है | केरल के यादवों के दो मुख्य गोत्र है –
वम्मा गोत्र तथा वन्कारा गोत्र | ये परस्पर गोत्र में विवाह करते हैं | पुरषों का
पारंपरिक परिधान धोती तथा औरतों का चेला होता है |
मंदिर निर्माण में महारत हासिल होने के कारण
उत्तरी मालाबार क्षेत्र के कोलाथिरी राजाओं ने कोलायण कुल के लोगों को मणियानी की
उपाधि प्रदान की|
केरल
में यादव मुख्य रूप से मालाबार क्षेत्र यानि उत्तरी केरल में बसे हुए हैं | केरल
के कासरगोड, कन्नूर, कोज्हिकोड़े, वायानद एवं पलक्कड जिलों में इनकी आबादी अधिक है
| यहाँ के कन्नूर साउथ बाज़ार, कूथुपरम्बा, थाज्हे चोव्वा, कालीकट, कोट्टली एवं
थालास्सेरी नामक शहर में यादवों की जनसांख्यिक सघनता अधिक है |
शहरी,
उपनगरीय एवं नगरीय क्षेत्रों में बसे होने के कारण इनमे शिक्षा का निरन्तर विकास
हो रहा है, इन्हें रोजगार के अधिक अवसर प्राप्त होते हैं, जिनके परिणामस्वरूप ये
अपने पारम्पारिक पेशा पशूपालन एवं दुग्ध व्यवसाय को छोड़कर अन्य व्यवसाय भी अपना
रहे हैं | कूथुपरम्बा एवं थाज्हे चोव्वा में सड़क किनार बसे हुए यादवों ने आधुनिक
मकान तथा व्यावसायिक कॉम्प्लेक्स बना लिए हैं | बहुत से यादव खाड़ी देशों में नौकरी
कर रहे हैं | जिससे उनकी आर्थिक उन्नति हो रही है | यहाँ की महिलाओं की स्थिति में काफी सुधार हो रहा है |
कन्नूर
के प्रख्यात वकील एन. सोमनाथन ने 1980 में यहाँ अखिल केरल यादव महासभा की स्थापना
की | जिसके माध्यम से वे यादवों को संगठित करने और उनमें सामाजिक, राजनैतिक और
सांस्कृतिक जागरूकता लाने के प्रयास कर रहे है | एन. सोमनाथन अखिल केरल यादव
महासभा का अखिल भारतवर्षीय यादव महासभा के साथ समन्वय स्थापित करने में महत्वपूर्ण
भूमिका अदा कर रहे हैं | इसमें वल्लापिल गोपी और वी. कृष्णन उनका भरपूर सहयोग कर
रहे हैं |
केरल
के यादवों का पारंपरिक राजनैतिक संगठन ‘सभा’ कहलाता है और इनका प्रमुख ‘पिन्नाबधा’
कहलाता है | इनका मुख्य देवता ‘कांची कमाक्षियाम्मा’ कहलाता है | ‘मुथुमरियाम्मा’
देवी का भी इस समाज में महत्वपूर्ण स्थान होता है | इसके अतिरिक्त ये सभी अन्य
हिन्दू देवी-देवताओं की भी पूजा करते हैं |
प्रमुख
यादव –
1.
एन. सोमनाथन – कन्नूर के प्रख्यात
वकील व अध्यक्ष, अखिल केरल यादव महासभा
2.
टी. वी. राजेश – विधायक, कलियाशेरी
(कन्नूर) – सी. पी. एम्.
3.
के. कन्ही रमण – विधायक, उद्दमा
(कासरगोड) - सी. पी. एम्., इनके पिता चंदू मणियानी साधारण किसान थे |
4.
प्रदीप नारायण – केरल कैडर के आई. ए.
एस. अधिकारी
समय समय-समय पर अपग्रेड करने का कष्ट करेंगे।
जवाब देंहटाएंBharwad yaduvanshi hai jo har ghar ME Bhagwan krishna ki puja karte hai aaja gujarat ME dhekhle ek bhi bharwad ke gharpe jay thakar na sune to bata Dena jay thakar
जवाब देंहटाएंयादव केरल में पषुपालन और खेती ही करते थे इसके बाद कोई अन्य व्यवसाय
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