वाडियर (ओडेयर) राजवंश
वाडियर राजवंश दक्षिण भारत का एक प्रमुख हिन्दू राजवंश था जिसने 1399 से 1947 तक मैसूर प्रान्त पर राज किया | इस राजवंश की स्थापना दो वीर यादव भाइयों विजय एवं कृष्ण द्वारा 11 मई 1399 ई० में किया गया था | ब्रिटिश शासन के दौरान यह ब्रिटिश शासन के अधीन एक रियासत था, जिन्हें 21 बन्दुक की सलामी की पदवी प्राप्त थी | वाडियर राजा अपने प्रशासनिक कौशल, दूरदृष्टि एवं सामाजिक न्याय के लिए प्रसिद्ध थे | वाडियर राजाओं ने कला, चित्रकारी, संगीत, संस्कृति एवं साहित्य को भरपूर संरक्षण दिया | वाडियर राजाओं के शासन के समय मैसूर, कर्णाटक में संस्कृति एवं कला का केंद्र बन गया था |
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मैसूर का राजमहल
जनश्रुतियों के अनुसार, यदु वंश के दो राजकुमार विजय और कृष्ण, द्वारका (गुजरात) से मैसूर के मेलकोट गाँव में चामुण्डी मंदिर के दर्शन के लिए आये थे | एक रात माँ देवी चामुंडेश्वरी यादव राजकुमार विजय के सपने में आई और उन्हें निर्देश दिया की वो दोनों भाई तत्काल हदिनादु जाये, जहाँ करुगाहल्ली के शासक, मरानायक द्वारा वहां की विधवा राजमाता चिक्कादेवारासम्मान्नी एवं उसकी पुत्री देवाजम्मन्नी को सताया जा रहा है | वहां पहुंचकर दोनों राजकुमार एक विशाल झील दोद्दकेरे के तट पर स्थित कोडी भैरोश्वर मंदिर में रुके | जहाँ तत्कालीन छोटे से मैसूर शहर के लोग पीने एवं अन्य दैनिक कार्यों के लिए जल लेने आते थे | एक दिन सुबह में कुछ महिलाएं वहां पर अपने कपडे धोने के दौरान मैसूर राजपरिवार की नवयुवती राजकुमारी देवाजम्मन्नी एवं उसकी विधवा माँ की दयनीय स्थिति के बारे में चर्चा कर रही थी | मैसूर की राजकुमारी के पिता, चामराजा के अकस्मात निधन के पश्चात् उत्पन्न विषम परिस्थितियों का लाभ उठाते हुए पड़ोस के राज्य करुगाहल्ली के शासक, मरानायक ने विधवा राजमाता चिक्कादेवारासम्मान्नी को धमकी दिया की वह स्वेच्छा से अपना राज्य उसे सौंप दे तथा राजकुमारी देवाजम्मन्नी का विवाह उससे कर दे, अन्यथा वह उसे बलपूर्वक हासिल कर लेगा | इन बातों को दोनों राजकुमारों ने सुन लिया तथा उन्हें उनके विपदा से मुक्त कराने का संकल्प लिया |
जंगमा ओडेया नामक शैवायत साधु की मदद से, दोनों क्षत्रिय भाई दुखी महारानी एवं राजकुमारी के पास पहुचें और उन्हें उनके दुखों से उबारने का वचन दिया | उन दोनों वीर भाइयों ने पहले सेना के एक छोटी सी टुकड़ी को जमा किया, फिर राजमाता के माध्यम से मरानायक को सन्देश भिजवा दिया की राजकुमारी उससे विवाह करने के लिए राजी है | नियत समय पर पडोसी राज्य करुगाहल्ली का शासक, मरानायक बारात लेकर मैसूर प्रान्त की राजधानी हदिनादु के लिए प्रस्थान किया | राजकुमार विजय और कृष्ण वेश बदलकर मरानायक के बारात जुलुस में घुस गए | वीर राजकुमार विजय ने मरानायक के शिविर में घुसकर मरानायक का वध कर दिया तथा उसके अनुज कृष्ण ने करुगाहल्ली पर आक्रमण कर उसे अपने अधीन कर लिया | इसप्रकार दोनों वीर भाइयों ने मैसूर राजपरिवार एवं उसके राज्य की रक्षा की तथा उन्हें संकट से उबारा | इससे खुश होकर राजमाता चिक्कादेवारासम्मान्नी ने अपनी पुत्री देवाजम्मन्नी का विवाह बड़े भाई विजय से कर दिया और 11 मई 1399 को विजय का मैसूर की राजगद्दी पर राज्याभिषेक हुआ | इसतरह वह मैसूर प्रांत का प्रथम यदुवंशी राजा बना और अपना नाम यदुराय रखा लिया | इसप्रकार यदुराय ने 1399 में मैसूर में वाडियर राजवंश का स्थापना किया | उसने 1423 ई० तक मैसूर प्रांत पर राज्य किया | यदुराय से लेकर जयचामराजा वाडियर तक इस राजवंश में कुल 25 शासक हुए |
विद्वान इतिहासकार प्रोफ़ेसर पी. वी. नन्जराजे उर्स के अनुसार यदुराय एवं कृष्णराय द्वारका से नहीं आये थे, परन्तु वे विजयनगर अथवा मैसूर प्रान्त के ही किसी क्षेत्र से आये थे | उनकी वीरता के कहानी जानकर चिक्कादेवारासम्मान्नी ने ही उन्हें अपने राजमहल में मरानायक के वध के लिए बुलाई थी |
प्रारम्भ में मैसूर राज्य के शासक विजयनगर साम्राज्य के अधीन एक सामंत की हैसियत रखते थे | 1399 ई० से लेकर 1565 ई० तक वे विजयनगर साम्राज्य के अधीन जागीरदार थे | 1565 ई० में तालीकोटा के युद्ध में विजयनगर की हार एवं विजयनगर साम्राज्य के विघटन के बाद मैसूर के तत्कालीन महाराजा तिम्माराजा वोडेयर II ने अपने को स्वतन्त्र राजा घोषित कर दिया | राजा वोडेयर1 इसा वंश एक अत्यंत प्रतापी एवं कुशल राजा था, उसने 1578 से 1617 तक इस प्रान्त पर राज्य किया | उसने विजयनगर के वायसराय तिरुमल को हराकर उसकी राजधानी श्रीरंगपट्टनम पर अधिकार कर लिया तथा 1610 ई० में उसने अपनी राजधानी मैसूर से श्रीरंगपट्टनम में स्थानान्तरित कर दिया था, जो कावेरी नदी के तट पर स्थित एक विरल टापू था एवं सुरक्षा के दृष्टिकोण से भी अद्वितीय था | 1565 से 1761 तक इस वंश के शासक स्वतन्त्र शासक रहे, परन्तु 1761 से 1799 के बीच राज्यसत्ता उनके कमांडर इन चीफ हैदर अली एवं उसके पुत्र टीपू सुल्तान के हाथों में चली गई थी | इस दौरान वे इनके कठपुतली राजा बनकर रह गए थे | 1799 में ईस्ट इंडिया कंपनी के साथ लड़ाई में टीपू सुल्तान की मौत के बाद इस राज्य की प्रभु सत्ता ब्रिटिश के हाथों में चली गई | ईस्ट इंडिया कंपनी ने 1799 ई० में अंतिम राजा के पञ्च वर्षीय पुत्र कृष्णराजा III को इस राज्य का महाराजा घोषित किया तथा इस राज्य की राजधानी श्रीरंगपट्टनम से पुनः मैसूर कर दिया गया | मैसूर के महाराज ने अंग्रेजों को वार्षिक कर देना स्वीकार किया | 1799 से 1950 तक वाडियर शासक ब्रिटिश शासन के अधीन थे | 1947 में बिटिश शासन से भारत देश की मुक्ति पर मैसूर रियासत को भारत संघ में सम्मिलित कर दिया गया, परन्तु भारत के गणतंत्र घोषित होने के पूर्व तक वह मैसूर के महाराजा बने रहे | जयचामराजा वाडियर इस वंश के अंतिम शासक थे, जिसने 1940 से 1950 तक इस रियासत पर शासन किया |
1868 में ब्रिटिश संसद ने तत्कालीन मैसूर के महाराजा के अनुरोध को स्वीकार करते हुए उसके दत्तक पुत्र चामराजा वाडियर IX को मैसूर का महाराजा स्वीकार कर लिया | यह घटना वर्तमान मैसूर के निर्माण में महत्वपूर्ण चरण साबित हुआ | भारत में पहली बार, मैसूर महाराज द्वारा एक प्रतिनिधि सभा का गठन कर प्रजातांत्रिक राज्य का प्रयोग किया गया | अगले महाराजा नाल्वादी कृष्णराजा वाडियर जनता के बीच अत्यंत ही लोकप्रिय एवं प्रसिद्ध थे | लोग उन्हें प्यार से राजर्षि कहा करते थे | महात्मा गाँधी ने उनके राज्य की तुलना एतिहासिक राजा भगवान राम से की थी तथा उनके राज को राम-राज्य कहा था |
वाडियर राजपरिवार के सदस्य उरसु जाति के नाम से जाने जाते हैं और उर्स सरनेम का प्रयोग करते हैं | कर्णाटक के सबसे लोकप्रिय मुख्यमंत्री देवराज उर्स इसी राजपरिवार से सम्बंधित थे | प्रत्येक वर्ष मैसूर राजमहल में दशहरा बड़े धूमधाम से मनाया जाता है |
कृष्णराजा वाडियर III (1799-1868) का स्वर्ण सिक्का, जिसके एक ओर शिवजी की मूर्ति चित्रित है जिसमे शिवजी एक हाथ में त्रिशूल एवं दूसरी हाथ में एक हिरण को लिए हुए है और उनकी धर्मपत्नी पार्वती उनके गोद में बैठी हुई है, जबकि दूसरी ओर श्री कृष्णराजा लिखा हुआ है |
(1399-present)
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Under Vijayanagara Empire
(1399-1565)
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(1399–1423)
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(1423–1459)
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(1459–1478)
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(1478–1513)
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(1513–1553)
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(1565-1761)
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(1553–1572)
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(1572–1576)
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Bettada Wodeyar
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(1576–1578)
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(1578–1617)
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(1617–1637)
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(1637–1638)
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(1638–1659)
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(1659–1673)
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(1673–1704)
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(1704–1714)
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(1714–1732)
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(1732–1734)
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(1734–1766)
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(1761-1799)
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(1734–1766)
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(1766–1772)
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(1772–1776)
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(1776–1796)
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Under British Rule
(1799-1950)
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(1799–1868)
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(1881–1894)
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(1894–1940)
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(1940–1950)
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(Monarchy abolished)
Titular monarchy (1950-present)
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(1950-1974)
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Srikanta Wodeyar
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(1974-2013)
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Kantharaja Urs Wodeyar
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(2013-present)
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अहीर या राजपूत थे ये लोग
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हटाएंAheer
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जवाब देंहटाएंAbe gadho ye Gujarat ke yaduvanshi jadeja rajput se nikle hai aj bhi hamara rista hai wadiyar yadav vansh se aur unki shadi bhi Gujarat aur Rajasthan ke rajput rajgharane me hoti hai itihas chorna bandh karo itihas choro😡😡😡
जवाब देंहटाएंItihas to tum logo ne chori kiya tha
हटाएंSun mere bhai pahle khud ke indian rajput vale page par jake chek karle ok unhone khud hi hata diya isko ki yeh rajput nahi hai yeh log pure yaduvanshi bhi nahi hai samja 🤣🤣 aur haa inki puri history me inhone pahli baar kisi rajput gharane ki ladki se sadi ki vo bhi love story thi jake check karle sale yeh koi rajput yaa jadeja ke vansj nahi hai 🙏🙏
हटाएंइनका काम ही हैँ पहले बेटियां देते हैँ, फिर बाप बना लेते हैँ, कभी भी मैसूर का राजवंश की शादी किसी राजपूत के यहाँ नहीं होती उनका सम्बन्ध केवल 3 परिवार और उनके रिश्तेदारो तक सिमित रहा हैँ इनकी जाति उर्स (अरसु )हैँ जो अहीर के समानार्थी हैँ कर्नाटक सरकार के अनुसार ये ओबीसी (अन्य पिछड़ा )वर्ग मे आते हैँ,
हटाएं100 साल बाद ये अखिलेश को भी राजपूत कहेँगे वैसे शुरुआत कर भी चुके हैँ कमलिया जादौन"