सोमवार, 11 अगस्त 2014

Yadavas in Bihar - बिहार में यादव

बिहार
             प्राचीन काल में बिहार मगध के नाम से जाना जाता था | यह 1000 वर्षों तक शक्ति, शिक्षा एवं संस्कृति का केंद्र रहा | प्राचीन काल में मगध का साम्राज्य देश के सबसे शक्तिशाली साम्राज्यों में से एक था । यहाँ से मौर्य वंशगुप्त वंश तथा अन्य कई राजवंशो ने देश के अधिकतर हिस्सों पर राज किया । पाल वंश ने भी पाटलिपुत्र को अपना राजधानी बनाकर मगध पर शासन किया | मौर्य वंश के शासक सम्राट अशोक का साम्राज्य पश्चिम में अफ़ग़ानिस्तान तक फैला हुआ था । मौर्य वंश का शासन 325 ईस्वी पूर्व से 185 ईस्वी पूर्व तक रहा । छठी और पांचवीं सदी इसापूर्व में यहां बौद्ध तथा जैन धर्मों का उद्भव हुआ । अशोक ने, बौद्ध धर्म के प्रचार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और उसने अपने पुत्र महेन्द्र को बौद्ध धर्म के प्रसार के लिए श्रीलंका भेजा । उसने उसे पाटलिपुत्र (वर्तमान पटना) के एक घाट से विदा किया जिसे महेन्द्र के नाम पर में अब भी महेन्द्रू घाट कहते हैं । बाद में बौद्ध धर्म चीन तथा उसके रास्ते जापान तक पहुंच गया । बिहार का ऐतिहासिक नाम मगध है । बिहार की राजधानी पटना का ऐतिहासिक नाम पाटलिपुत्र है ।

मगध के प्रथम राजवंश के स्थापना चंद्रवंशी राजा जरासंघ के पिता वृहद्रथ ने किया था | जरासंघ मगध का प्रथम शक्तिशाली सम्राट था |

मगध साम्राज्य पर नन्द वंश ने ईसा पूर्व 424 से ईसा पूर्व 321 तक शासन किया | नन्द वंश का प्रथम सम्राट महा पद्म नन्द तथा अंतिम सम्राट धनानंद था | नन्द वंश का उत्पति यदु वंश से हुआ था, इस बात के पर्याप्त एतिहासिक साक्ष्य हैं |

मौर्य राजवंश (322-185 ईसापूर्व) प्राचीन भारत का एक राजवंश था । इसने 137 वर्ष भारत में राज्य किया । इसकी स्थापना का श्रेय चन्द्रगुप्त मौर्य और उसके मन्त्री कौटिल्य को दिया जाता है, जिन्होंने नन्द वंश के सम्राट घनानन्द को पराजित किया। यह साम्राज्य पूर्व में मगध राज्य में गंगा नदी के मैदानों (आज का बिहार एवं बंगाल) से शुरु हुआ । इसकी राजधानी पाटलिपुत्र (आज के पटना शहर के पास) थी। चन्द्रगुप्त मौर्य ने 322 ईसा पूर्व में इस साम्राज्य की स्थापना की और तेजी से पश्चिम की तरफ़ अपना साम्राज्य का विकास किया । उसने कई छोटे छोटे क्षेत्रीय राज्यों के आपसी मतभेदों का फायदा उठाया जो सिकन्दर के आक्रमण के बाद पैदा हो गये थे। 316 ईसा पूर्व तक मौर्य वंश ने पूरे उत्तरी पश्चिमी भारत पर अधिकार कर लिया था। अशोक के राज्य में मौर्य वंश का बेहद विस्तार हुआ।

चन्द्रगुप्त मौर्य (322 ई. पू. से 298 ई. पू.)- चन्द्रगुप्त मौर्य के वंश के सम्बन्ध में विवाद है । ब्राह्मण, बौद्ध तथा जैन ग्रन्थों में परस्पर विरोधी विवरण मिलता है । विविध प्रमाणों और आलोचनात्मक समीक्षा के बाद यह तर्क निर्धारित होता है कि चन्द्रगुप्त मोरिय वंश का क्षत्रिय था । चन्द्रगुप्त के पिता मोरिय नगर प्रमुख थे । जब वह गर्भ में ही था तब उसके पिता की मृत्यु युद्धभूमि में हो गयी थी । उसकी अबला विधवा माँ अपने भाइयों के साथ भागकर पुष्यपुर (कुसुमपुर, पाटलिपुत्र) नामक नगर में अपने सम्बन्धी चान्दो यादव के यहाँ पहुँची, जहाँ उसने चंद्रगुप्त को जन्म दिया। चान्दों नामक ग्वाला ने अपने पुत्र की तरह उसका लालन-पालन किया और उसी के नाम पर उसका नाम चन्द्रदेव रखा गया | जो कालान्तर में चन्द्रगुप्त हो गया | जब वह बड़ा हुआ तो उसे गाय-भैंस चराने के काम पर लगा दिया। कहा जाता है कि एक साधारण ग्रामीण बालक चंद्रगुप्त ने राजकीलम नामक एक खेल का आविष्कार करके जन्मजात नेता होने का परिचय दिया। इस खेल में वह राजा बनता था और अपने साथियों को अपना अनुचर बनाता था। वह राजसभा भी आयोजित करता था जिसमें बैठकर वह न्याय करता था। गाँव के बच्चों की एक ऐसी ही राजसभा में चाणक्य ने पहली बार चंद्रगुप्त को देखा था। चरावाह तथा शिकारी रूप में ही राजा-गुण होने का पता चाणक्य ने कर लिया था तथा उसे एक हजार में कषार्पण में खरीद लिया । तत्पश्‍चात्‌ तक्षशिला लाकर सभी विद्या में निपुण बनाया । अध्ययन के दौरान ही सम्भवतः चन्द्रगुप्त सिकन्दर से मिला था । 323 ई. पू. में सिकन्दर की मृत्यु हो गयी तथा उत्तरी सिन्धु घाटी में प्रमुख यूनानी क्षत्रप फिलिप द्वितीय की हत्या हो गई । विशाखदत्त रचित मुद्रा राक्षस (राक्षस मगध का महामंत्री था ) के अनुसार चन्द्रगुप्त मौर्य क्षत्रिय जाति के थे तथा उनका सम्बन्ध नंद वंश से था | बौद्ध साहित्य “महापरिनिर्वाण सुत्त” में भी उन्हें क्षत्रिय बताया गया है | विशाखदत्त के मुद्राराक्षस एवं जैन ग्रन्थ ‘परिशिष्ठपर्व’ के अनुसार चन्द्रगुप्त का रक्त सम्बन्ध हिमालय के राजा पर्वतक एवं सिंध के शूरसेन वंश के राजा पोरस से था | सर जॉन मार्शल ने भी अपनी पुस्तक तक्षशिला में यही बात कही है | पोरस शूरसेन वंश का था यानि यदुवंशी था | नन्द भी यादव था | इन बातों से यह निष्कर्ष निकालता है की मौर्य यादव जाति से आते थे |

गुप्त वंश – मगध साम्राज्य पर 280 ई० से 550 ई० तक गुप्त राजवंश ने शासन किया| विक्रमादित्य इस वंश का सबसे प्रतापी राजा था | इतिहासकार डी. आर. रेग्मी के अनुसार गुप्त वंश की उत्पति नेपाल के अभीर-गुप्त राजवंश से हुई थी | इतिहासकार एस. चट्टोपाध्याय ने पंचोभ ताम्र-पत्र के हवाले से कहा कि गुप्त राजा क्षत्रिय थे तथा उनका उद्भव प्राचीन अभीर-गुप्त (यादव) वंश से हुई थी | गोप एवं गौ शब्द से गुप्त शब्द की उत्पति हुई है |     

पाल वंश ने 750 ई० से 1174 ई० तक पाटलिपुत्र को राजधानी बनाकर मगध पर शासन किया | इस वंश का संस्थापक गोपाल था | संध्याकर नंदी लिखित ‘रामचरितम’ के अनुसार वरेन्द्र (उत्तर बंगाल) उनका मातृभूमि था |
तारंथ रचित ‘मत्सयन्यय” के अनुसार शशांक के शासन के बाद बंगाल में अराजक स्थिति उत्पन्न हो गई थी, जिससे निपटने के लिए वहां के कुछ प्रमुख लोगों ने जनतांत्रिक ढंग से सैन्य कमांडर गोपाल को अपना राजा चुना, जो गौपालक परिवार से आता था |
रणजीत सिंह यादव - सन 1857 ई० में जब वीर कुंवर सिंह ने अंग्रेजों के विरुद्ध युद्ध का बिगुल फूंका तब उनकी सेना का नेतृत्व रणजीत सिंह यादव ने किया था |
रासबिहारी लाल मंडल (1866-1918) - मिथिला के यादव शेर.
अगर बिहार के आधुनिक इतिहास में पिछड़े वर्ग के और यादव समाज के प्रथम क्रन्तिकारी व्यकित्व का उल्लेख किया जाये तो मुरहो एस्टेट के ज़मींदार रासबिहारी लाल मंडल का ही नाम आयेगा. ज़मींदार होते हुए भी स्वतंत्रता आन्दोलन में सक्रिय और बिहार में कांग्रेस पार्टी के संस्थापक सदस्यों में एक रासबिहारी बाबू का सम्बन्ध सुरेन्द्र नाथ बनर्जी, बिपिन चन्द्र पाल, सच्चिदानंद सिन्हा जैसे प्रमुख नेताओं से था. 1908 से 1918 तक प्रदेश कांग्रेस कमिटी और ए आई सी सी के बिहार से निर्वाचित सदस्य थे.
रासबिहारी लाल मंडल ने 1911 में यादव जाति के उत्थान के लिए मुरहो, मधेपुरा (बिहार) में गोप जातीय महासभा की स्थापना की. इस महान कार्य में उनका साथ दिया बांकीपुर(पटना) के श्रीयुत्त केशवलाल जी, देवकुमार प्रसादजी, संतदास जी वकील, सीताराम जी, मेवा लाल जी, दसहरा दरभंगा के नन्द लाल राय जी,गोरखपुर के रामनारायण राउत जी, छपरा के शिवनंदन जी वकील, जमुना प्रसाद जी, जौनपुर के फेकूराम जी, सलिग्रामी मुंगेर के रघुनन्दन प्रसाद मुख़्तार जी, हजारीबाग से स्वय्म्भर दासजी, लखनऊ के कन्हैय्यालाल जी, मुरहो, मधेपुरा से ब्रिज बिहारी लाल मंडल जी, रानीपट्टी से शिवनंदन प्रसाद मंडल जी एवं मधेपुरा से लक्ष्मीनारायण मंडल जी.
कांग्रेस के 1918 के कलकत्ता अधिवेशन के दौरान वे बीमार पड़ गए और 51 वर्ष की अल्प-आयु में बनारस में 25-26 अगस्त, 1918 को रासबिहारी लाल मंडल का निधन हो गया. यह संयोग ही था की उसी दिन बनारस में ही रासबिहारी बाबू के सबे छोटे पुत्र बी पी मंडल का जन्म हुआ. रासबिहारी लाल मंडल के बड़े पुत्र भुब्नेश्वरी प्रसाद मंडल थे जो 1924 में बिहार-उड़ीसा विधान परिषद् के सदस्य थे, तथा 1948 में अपने मृत्यु तक भागलपुर लोकल बोर्ड (जिला परिषद्) के अध्यक्ष थे. दूसरे पुत्र कमलेश्वरी प्रसाद मंडल आज़ादी की लड़ाई में जय प्रकाश बाबू वगैरह के साथ गिरफ्तार हुए थे और हजारीबाग सेन्ट्रल जेल में थे और 1937 में बिहार विधान परिषद् के सदस्य चुने गए. बी पी मंडल 1952 में मधेपुरा विधान सभा से सदस्य चुने गए. 1962 पुनः चुने गए और 1967 में मधेपुरा से लोक सभा सदस्य चुने गए. 1965 में मधेपुरा क्षेत्र के पामा गाँव में हरिजनों पर सवर्णों एवं पुलिस द्वारा अत्याचार पर वे विधानसभा में गरजते हुए कांग्रेस को छोड़ सोशलिस्ट पार्टी में आ चुके थे. बड़े नाटकीय राजनैतिक उतार-चढ़ाव के बाद 1 फ़रवरी, 1968 में बिहार के पहले यादव मुख्यमंत्री बने.
बिहार में यादव आन्दोलन
शिवनंदन प्रसाद मंडल एवं लक्ष्मी नारायण मंडल के प्रयासों से बिहार के यादव सन 1909 से ही संगठित होने लगे थे | उन्होंने 21 मई 1909 में गोपाल मंडली की स्थापना की, जिसका मुख्य मकसद यादवों में शिक्षा का विकास करना तथा सामाजिक एवं सांस्कृतिक जागृति लाना था | जयनारायण मंडल की अध्यक्षता में उन्होंने गोपाल मंडली का एक सम्मलेन भी किया | बाद में इस संगठन से जुड़ने वाले नेताओं में रास बिहारी लाल मंडल एवं ब्रज बिहारी मंडल प्रमुख थे | उन नेताओं ने उस समय सम्पूर्ण बिहार, उत्तर प्रदेश , पंजाब आदि राज्यों का दौरा किया | दिसम्बर 1911 में उनलोगों ने मधेपुरा में गोप जाति महासभा का प्रथम अधिवेशन आयोजित किया, जिसकी अध्यक्षता सुन्दर लाल चौधरी ने की | दामोदर प्रसाद की अध्यक्षता में फरवरी 1913 में पटना में इसका दूसरा अधिवेशन आयोजित किया गया | विद्यालय उपनिरीक्षक स्वयंभर दास ने इसमें महती भुमिका निभाई | दिसम्बर 1913 में पूर्णियां में रास बिहारी लाल मंडल की अध्यक्षता में इसका तीसरा अधिवेशन आयोजित किया गया, जिसमे प्रथम बार एक कार्यकारिणी समिति का गठन किया गया | दिसम्बर 1914 में छपरा में रेवारी के राजा राव बलबीर सिंह की अध्यक्षता में इसका चतुर्थ अधिवेशन आयोजित किया गया, जिसमें शिक्षा, सामाजिक एवं राजनैतिक जागृति  पर विशेष जोर दिया गया | इस प्रकार यह सफ़र आगे बढ़ता गया |
1970 एवं 80 के दशक में शेरे बिहार माननीय रामलखन सिंह यादव ने अखिल भारतीय यादव महासभा के माध्यम से इस क्षेत्र के लोगों में राजनैतिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक जागरूकता लाने का अथक प्रयास किया | वह 1986 में अखिल भारतवर्षीय यादव महासभा के अध्यक्ष बने | बिहार के राजनैतिक क्षितिज में श्री लालू प्रसाद के उदय ने इस क्षेत्र के यादवों की राजनैतिक दशा और दिशा बदल दी. उन्हें अपने खोये हुए राजनैतिक गरिमा एवं ताकत का एहसास हुआ | लालू यादव मार्च 1990 में बिहार के मुख्यमंत्री बने | लालू प्रसाद ने बिहार के यादवों में सामाजिक, सांस्कृतिक एवं राजनैतिक स्वाभिमान जगाने का काम किया | इन्हीं के प्रयासों से पूर्व प्रधानमन्त्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने मंडल कमीशन के सिफारिशों को लागू करने की घोषणा की | लालू यादव सामाजिक न्याय के प्रबल पक्षधर हैं | उनका बिहार का मुख्य मंत्री बनना एक क्रान्तिकारी कदम था, जिसने बिहार के शोषितों एवं दलितों को सवर्णों के आर्थिक एवं मानसिक शोषण से मुक्ति दिलाई | उन्होंने एक बार कहा था – ‘मैंने यहाँ के गरीबों, पिछड़ों तथा दलितों को स्वर्ग तो नहीं दिया, परन्तु स्वर जरूर दिया |’ उन्होंने पूरे देश की राजनीति में पिछड़े वर्ग को उभारने का भागीरथी प्रयास किया | लालू जी के राजनैतिक उतार-चढाव के साथ बिहार के यादव विधायकों के संख्या में भी उतार-चढाव होता रहा | 1990 के बिहार विधान सभा में 63 यादव विधायक चुनकर आये, जबकि 1995 में 86, 2000 में 64, 2005 में 54 और 2010 में 39 यादव विधानसभा में पहुँचने में कामयाब हुए |
बिहार में यादव जाति के आबादी लगभग 18 - 20 % है और ये पूरे बिहार में फैले हुए हैं | बिहार में सुपौल, मधेपुरा, सहरसा, खगड़िया, पूर्णियां, मधुबनी, दरभंगा, सीतामढ़ी, छपरा, गोपालगंज, पटना, गया, जहानाबाद आदि जिले यादव बाहुल्य माने जाते हैं | यहाँ यादवों की मुख्य शाखाएं हैं – किस्नौत, मझरौठ, गोरिया या गौर, घोसी, गड़ेरिया आदि |
प्रमुख यादव विभूति –
  1. रास बिहारी लाल मंडल – स्वतंत्रता सेनानी, मुरहो (मधेपुरा) के जमींदार, गोप जातीय महासभा के
संस्थापक सदस्य एवं बिहार के प्रथम यादव मुख्यमंत्री बिन्देश्वरी प्रसाद मंडल के पिता थे |
  1. बिन्देश्वरी प्रसाद मंडल (1918-1982) –  वह बिहार के सप्तम मुख्यमंत्री तथा प्रथम यादव मुख्यमंत्री बने | वह 1 फरवरी 1968 से 2 मार्च 1968 तक बिहार के मुख्यमंत्री रहे | वह 1967 और 1977 में मधेपुरा लोकसभा से चुने गए | मंडल बाबु दिसम्बर 1978 में मोरार जी सरकार द्वारा गठित जन अधिकार आयोग के अध्यक्ष बनाये गए, जिन्हें बाद में मंडल आयोग कहा जाने लगा | इंदिरा गाँधी ने मंडल आयोग की रिपोर्ट को ठंढे बसते में रख दिया था, परन्तु एक दशक बाद श्री वी पी सिंह सरकार ने मंडल आयोग की रिपोर्ट को लागु किया | वह गरीबों एवं पिछड़ों के सच्चे मसीहा थे | 2001 में भारत सरकार द्वारा उनके सम्मान में डाक टिकट जारी किया गया |
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  1. दरोगा प्रसाद राय – इनका जन्म 2 सितम्बर 1922 को बिहार के सारण जिला में हुआ था | यह 1970 में बिहार के मुख्यमंत्री बने |
  2. स्व० बलिराम भगत – यह स्वतंत्र भारत के प्रथम यादव सांसद थे | यह 1947- 1952 तक अंतरिम लोकसभा के सदस्य एवं प्रथम, द्वितीय, तृतीय और सप्तम लोकसभा के भी सदस्य रहे| यह लोकसभा अध्यक्ष तथा राजस्थान के राज्यपाल भी रहे |
  3. लालू प्रसाद – इनका जन्म 11 जुन 1948 को गोपालगंज जिले के फुलवरिया गाँव में हुआ था | इनके पिता का नाम कुंदन राय एवं माता का नाम मरछिया देवी है | यह छात्र जीवन में ही राजनीति में आ गए | 1970 में यह पटना यूनिवर्सिटी छात्र यूनियन के महासचिव और 1973 में अध्यक्ष चुने गए | 1974 में इन्होंने जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में सम्पूर्ण क्रांति आन्दोलन में खुलकर भाग लिया और लोकनायक के करीबी बन गए | 1977 में इन्होंने छपरा से जनता पार्टी के टिकट पर लोकसभा चुनाव जीता | उस समय इनका उम्र मात्र 29 साल था और वह तत्कालीन लोकसभा के सबसे  युवा सदस्य थे |1980 एवं 1985 में बिहार विधानसभा के सदस्य बने | श्री कर्पूरी ठाकुर के निधन पर वे 1989 में बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बने | 1989 लोकसभा चुनाव में वह पुनः छपरा लोकसभा सीट से जनता दल के टिकट पर सांसद बने | 10 मार्च 1990 से 28मार्च 1995 एवं 4 अप्रैल 1995 से 25 जुलाई 1997 तक वह बिहार के मुख्यमंत्री रहे |  जनता दल से मतभेदों के कारण उनहोंने 5 जुलाई 1997 को राष्ट्रीय जनता दल का गठन किया | चारा घोटाला में नाम आने पर इन्होंने 25 जुलाई 1997 को मुख्यमंत्री पड़ से इस्तीफा दे दिया और इनके स्थान पर इनकी पत्नी श्री मति राबरी देवी बिहार की मुख्यमंत्री बनी | वह 1998 में मधेपुरा से सांसद बने | 1999 लोकसभा चुनाव में वह मधेपुरा में श्री शरद यादव से पराजित हो गए | वह राज्यसभा के लिए चुने गए | 2004 में वह छपरा संसदीय क्षेत्र से और मधेपुरा संसदीय क्षेत्र से सांसद बने एवं यूपीए -I सरकार में रेल मंत्री बनाये गए | बाद में उन्होंने मधेपुरा से त्यागपत्र दे दिया | इन्होंने रेलवे को घाटे से उबारकर लाभ में पहुँचा दिया | 2009 में वह पुनः छपरा से सांसद बने | 3 अक्टूबर 2013 को चारा घोटाला में सजा सुनाये जाने पर इन्हें लोकसभा से बर्खास्त कर दिया गया | 

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6.   राबड़ी देवी – पूर्व मुख्यमंत्री एवं लालू प्रसाद की पत्नी, यह 25 जुलाई 1997 को बिहार की 21वीं मुख्यमंत्री बनी |   यह 25 जुलाई 1997 से 11 फरवरी 1999 तक,  9 मार्च 1999 से 2 मार्च 2000 और 11 मार्च 2000 से 6 मार्च 2005 तक बिहार की मुख्यमंत्री रही | 

7.   स्व० रामलखन सिंह यादव – पूर्व केन्द्रीय मंत्री
8.   स्व० देवनारायण यादव – पूर्व विधानसभा अध्यक्ष
9.   स्व० सूर्य नारायण यादव – पूर्व सांसद, सहरसा
10.  चुनचुन लाल यादव – पूर्व सांसद, भागलपुर
11.  देवेन्द्र प्रसाद यादव – पूर्व केन्द्रीय मंत्री
12.  नवल किशोर राय - पूर्व केन्द्रीय मंत्री
13.  श्रीमती कांती सिंह - पूर्व केन्द्रीय मंत्री
14.  जयप्रकाश नारायण यादव - पूर्व केन्द्रीय मंत्री, सांसद – बांका, राजद | वे 2004 में मुंगेर से लोकसभा चुनाव जीते एवं  संप्रग-I सरकार में 2004 में केंद्र में जल संसाधन राज्यमंत्री बने थे | 2014 में वह बांका से राजद के टिकट पर लोकसभा पहुंचे |
             
15.  रामकृपाल यादव – सांसद, पाटलिपुत्र, भाजपा, 12 मार्च 2014 को इन्होंने भाजपा के सदस्यता ली, इसके पूर्व यह राजद में थे | 1985-1986 में वे पटना के उप-महापौर थे |1992-1993 में बिहार बिधान परिषद् के सदस्य थे | 1993 उप-चुनाव में पटना से सांसद बने | 1996 एवं 2004 लोकसभा चुनाव जीतकर पटना से सांसद बने | 2014 लोकसभा चुनाव में भाजपा के टिकट पर पाटलिपुत्र संसदीय क्षेत्र से सांसद बने |  वर्तमान में मोदी सरकार में केन्द्रीय स्वच्छता एवं पेयजल राज्यमंत्री 
                                   
                
16.  हुकुमदेव नारायण यादव- सांसद मधुबनी, भाजपा | वह 1967, 1969 और 1972 में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी से बिहार बिधानसभा के सदस्य बने | वह 1979 में लोक दल से लोकसभा के लिए चुने गए | 1980 में राज्यसभा के लिए चुने गए |1988 में जनता पार्टी के बिहार प्रदेश के अध्यक्ष चुने गए | 1989 में जनता दल से दरभंगा से लोकसभा चुनाव जीते | 1990 में चंद्रशेखर सरकार में कपड़ा एवं खाद्य प्रसंस्करण मंत्री बने | 1999 भाजपा के टिकट पर पुनः लोकसभा में पहुचे और बाजपेयी सरकार में राज्य मंत्री बनाये गए |2009 और 2014 में भाजपा से मधुबनी से लोकसभा चुनाव जीते |
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17. शरद यादव – ये सात बार लोकसभा के लिए एवं दो बार राज्यसभा के लिए चुने गए | इनका जन्म 1 जुलाई 1947 को मध्यप्रदेश के होसंगाबाद जिले में हुआ था | यह सर्वप्रथम 1974 में जबलपुर (मध्यप्रदेश) लोकसभा के लिए चुने गए | सम्पूर्ण क्रांति के दौरान जयप्रकाश जी के आह्वान पर लोकसभा से इस्तीफा देने वाले वह प्रथम सांसद थे | 1977 में वह पुनः जबलपुर लोकसभा के लिए चुने गए | 1989 में वह बदायूं (उत्तर प्रदेश) से लोकसभा चुनाव जीते | 1991, 1996, 1999 एवं 2009 में मधेपुरा (बिहार) से लोकसभा चुनाव जीते | वे वी पी सिंह एवं देवगौड़ा सरकार में केन्द्रीय मंत्री रहे | वर्तमान में वे बिहार से राज्यसभा सांसद हैं |


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18. अर्जुन राय – पूर्व सांसद – सीतामढ़ी, जद यू
. 19. रंजन प्रसाद यादव – पूर्व सांसद- पाटलिपुत्र, जदयू
20.  ओमप्रकाश यादव – सांसद- सिवान, भाजपा, इसके पूर्व यह 2004 में सिवान से निर्दलीय सांसद बने | 
21.  नन्द किशोर यादव – नेता प्रतिपक्ष, बीजेपी
22.  विजेंद्र प्रसाद यादव – मंत्री बिहार सरकार
23.  रामाश्रय प्रसाद यादव – पूर्व अध्यक्ष, बिहार लोकसेवा आयोग
24.  लक्ष्मी नारायण यादव – पूर्व अध्यक्ष, बिहार लोकसेवा आयोग
25.  तेजस्वी यादव – क्रिक्केटर, लालू प्रसाद के पुत्र
26.  खेसारी लाल यादव - भोजपुरी अभिनेता
27.  पप्पू यादव – सांसद,  मधेपुरा, राजद
28.  श्री मति रंजीता रंजन – सांसद – सुपौल, कांग्रेस
29.  नित्यानंद राय – सांसद – समस्तीपुर, भाजपा
30.   डॉ. बिरेन्द्र कुमार यादव – बिहार कैडर के आई. ए. एस. अधिकारी
31.  अनिल किशोर यादव – डी. आई. जी. (बिहार कैडर)
32.  गणेश प्रसाद यादव – आई. पी. एस. अधिकारी
33.   महावीर प्रसाद - आई. ए. एस. अधिकारी
34.   गोरे लाल यादव – सेवानिवृत आई. ए. एस. अधिकारी



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