1 करौली रियासत
करौली शहर की स्थापना 1348 ई० में यदुवंशी राजपूत
राजा, अर्जुन पाल द्वारा की गई थी | इस पवित्र शहर को पहले वहां की स्थानीय देवी
कल्याणी के नाम पर कल्याणपुरी के नाम से जाना जाता था | किद्वंतियों के अनुसार,
करौली रियासत की स्थापना भगवान श्री कृष्ण के 88वीं पीढ़ी के राजा, बिजल पाल जादों
द्वारा 995 ई० में की गई थी | इस रियासत को ब्रिटिश राज में 17 बंदूकों की सलामी
की पदवी मिली हुई थी | करौली का किला 1938 ई० तक राजपरिवार का सरकारी निवास था |
करौली राज परिवार के सदस्य अपने को श्री कृष्ण के वंशज मानते है और वे यदुवंशी
राजपूत कहलाते हैं | करौली किले में उनके आराध्य देव श्री मदन मोहन जी (श्री
कृष्ण) की मूर्ति बनी हुई है जिसकी पूजा राजपरिवार के सदस्य एवं सम्पूर्ण राजस्थान
तथा भारत भर के लोग करते हैं | चैत्र महीने में इस किले में विशाल मेला लगता है |
2 गायकवाड राजवंश : बड़ौदा रियासत
गायकवाड़, गायकवार अथवा गायकवाड एक मराठा कुल है, जिसने 18 वीं सदी के मध्य से 1947 तक पश्चिमी भारत के वड़ोदरा या बड़ौदा रियासत पर राज्य किया था |
गायकवाड़ राजवंश का झंडा
गायकवाड़ यदुवंशी श्री कृष्ण के वंशज माने जाते हैं तथा यादव जाति से आते हैं | उनके वंश का नाम गायकवाड़ – गाय और कवाड़ (दरवाजा) के मेल से बना है |
बड़ौदा के गायकवाड़ राजवंश की स्थापना मराठा जनरल पिलाजी राव गायकवाड़ द्वारा 1721 ई०में मुग़ल साम्राज्य से यह शहर जीतकर किया गया था |
वड़ोदरा का लक्ष्मी विलास महल
दामजी राव गायकवाड़ ने अन्य मराठा सरदार सदाशिव राव बाहू, श्री मत विश्वास राव, मल्हार राव होल्कर, जयप्पा और महादजी शिंदे के साथ मिलकर अफगानों के विरुद्ध तीसरे पानीपत युद्ध 1761 में भाग लिया था, जिसमे अफगान विजयी रहे थे | इस हार से मराठा रियासत कमजोर होते गए | गायकवाड अन्य मराठा सरदारों के साथ ब्रिटिश के विरुद्ध प्रथम आंग्ल-मराठा युद्ध 1802 में भी भाग लिया था |गायकवाड़ रियासत का भारत की आजादी के उपरांत भारत संघ में विलय कर दिया
गया|
Maharaja SAYAJIRAO 1
महाराजा सत्यजित राव I
3 नवानगर रियासत : जडेजा राजवंश
Nawanagar State
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Navanagar, part of Bombay Presidency, 1909
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History
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- Established
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1540
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1948
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नवानगर
रियासत कच्छ की खाड़ी के दक्षिण में काठियावाड़ क्षेत्र में अवस्थित था | इस रियासत
पर 1540 ई० से लेकर 1948 ई० तक जडेजा वंश का शासन रहा |
इस वंश के शासक अपने को यदुवंशी श्री कृष्ण के
वंशज मानते थे, इसप्रकार यह वंश यदुवंशी राजपूत कुल के अंतर्गत आता है |
इस
रियासत के शासक कच्छ के राव की भांति “जाम साहिब” की उपाधि धारण करते थे और हिन्दू
धर्म में विश्वास करते थे | ब्रिटिश राज में इन्हें 13 बन्दूक की सलामी की पदवी
मिली हुई थी | इस रियासत का झंडा चौकोर लाल रंग का होता था, जिस पर सफ़ेद हाथी का
चित्र बना रहता था | नवानगर रियासत मोतियों के लिए प्रसिद्ध था |
नवानगर
रियासत की स्थापना कच्छ के जडेजा शासकों के वंशज जाम रावल ने 1540 ई० में किया था
| इस वंश के शासक अपने पड़ोसी राजाओं तथा मुग़ल साम्राज्य के विरुद्ध युद्ध में
लम्बे समय तक उलझे रहे | “1807 के वाकर संधि” से
काठियावाड़ के इस रियासत में शांति आई | 22 फरवरी 1822 को यह रियासत ब्रिटिश
संरक्षण में आ गया |
जाम
साहेब रणजीत सिंह जी 1907 से 1933 तक इस रियासत के राजा रहे | वो एक प्रसिद्ध
क्रिकेट खिलाड़ी थे | रणजीत सिंह जी इंग्लैंड के कैंब्रिज विश्वविद्यालय के तरफ से प्रथम
श्रेणी क्रिकेट तथा ससेक्स की ओर से काउंटी क्रिकेट खेलते थे | उन्हीं के सम्मान
में भारत में प्रथम श्रेणी टूर्नामेंट रणजी ट्रॉफी खेला जाता है|
एच.
एच. महाराजा जाम साहिब शत्रुशलुव दिग्विजय सिंह जडेजा इस रियासत के अंतिम शासक
रहे, जो 3 फरवरी 1966 से 28 दिसम्बर 1971 तक, प्रिवीपर्स के समाप्ति तक इस रियासत
के जाम साहिब रहे |
1948
में इस रियासत का भारत संघ में विलय कर दिया गया | भारत संघ में विलय की संधि पर
हस्ताक्षर करने वाला प्रथम रियासत नवानगर ही था |
1949
में नवानगर एवं इसके पड़ोसी क्षेत्रों को मिलाकर सौराष्ट्र राज्य का निर्माण किया
गया था | यह क्षेत्र वर्तमान गुजरात राज्य के जामनगर जिले में आता है | 1 मई 1960
को बम्बई प्रेसिडेंसी का विभाजन कर गुजरात राज्य का गठन किया गया | जामनगर जिला
गुजरात राज्य का अंग बन गया |
K. S. Ranjitsinhji
From
Wikipedia, the free encyclopedia
"
Ranji
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Personal
information
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Full
name
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Kumar Shri Ranjitsinhji
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Born
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Died
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Nickname
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Ranji,
Smith
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Batting
style
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Right-handed
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Bowling
style
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Role
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International
information
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National
side
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Last
Test
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Domestic
team information
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Years
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Team
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1895–1920
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1901–1904
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1893–1894
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Career
statistics
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Competition
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Matches
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15
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307
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Runs
scored
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989
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24692
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44.95
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56.37
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100s/50s
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2/6
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72/109
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Top
score
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175
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97
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8056
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1
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133
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39.00
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34.59
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–
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4
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10
wickets in match
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–
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0
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Best
bowling
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1/23
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6/53
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13/–
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233/–
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रणजी
ट्राफी
After his
death, the Board of Control for Cricket in
India (BCCI)
started the Ranji
Trophy in 1934,
with the first fixtures taking place in 1934–35. The trophy was donated
by Maharaja Bhupinder Singh of Patiala, who
also inaugurated it. Today it remains a domestic first-class cricket championship
played in India between different city and state sides.
4 होल्कर वंश
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Holkar Maharaja of Indore
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First monarch
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Last monarch
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Yeshwantrao Holkar II
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Official residence
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Monarchy started
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1731
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Monarchy ended
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1948
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होल्कर वंश भारत में इन्दौर के मराठा शासक रहे हैं। इन्हें मूलरूप से एक चरवाहा जाति (यादव / कुरुबा) या कृषक वंश के रूप में जाना जाता है, जो मथुरा ज़िले से आकर दक्कन के गाँव ‘होल’ या ‘हल’ में बस गये थे। इसी गाँव के निवासी होने के कारण इनका पारिवारिक नाम 'होल्कर' हो गया। इस राजवंश के संस्थापक मल्हारराव होल्कर अपनी योग्यता के बलबूते पर किसान मूल से ऊपर उठे थे।
होलकर राजवंश मल्हार राव से प्रारंभ हुआ जो 1721 में पेशवा की सेवा में शामिल हुए और जल्दी ही सूबेदार बने। होल्कर वंश के लोग 'होलगाँव' के निवासी होने से 'होल्कर' कहलाए। उन्होने और उनके वंशजों ने मराठा राजा और बाद में 1818 तक मराठा महासंघ के एक स्वतंत्र सदस्य के रूप में मध्य भारत में इंदौर पर शासन किया, और बाद में भारत की स्वतंत्रता तक ब्रीटिश भारत की एक रियासत रहे।
होलकर वंश उन प्रतिष्ठित राजवंशों मे से एक था जिनका नाम शासक के शीर्षक से जुडा, जो आम तौर पर महाराजा होल्कर या 'होलकर महाराजा' के रूप में जाना जाता था, जबकि पूरा शीर्षक 'महाराजाधिराज राज राजेश्वर सवाई श्री (व्यक्तिगत नाम) होलकर बहादुर, महाराजा ऑफ़ इंदौर' था।
सर्वप्रथम मल्हाराव होल्कर ने इस वंश की कीर्ति बढ़ाई। मालवाविजय में पेशवा बाजीराव की सहायता करने पर उन्हें मालवा की सूबेदारी मिली। उत्तर के सभी अभियानों में उन्होंने में पेशवा को विशेष सहयोग दिया। वे मराठा संघ के सबल स्तंभ थे। उन्होंने इंदौर राज्य की स्थापना की। उनके सहयोग से मराठा साम्राज्य पंजाब में अटक तक फैला। सदाशिवराव भाऊ के अनुचित व्यवहार के कारण उन्होंने पानीपत के युद्ध में उसे पूरा सहयोग न दिया पर उसके विनाशकारी परिणामों से मराठा साम्राज्य की रक्षा की।
मल्हारराव के देहांत के पश्चात् उसकी विधवा पुत्रवधू अहल्या बाई ने तीस वर्ष तक बड़ी योग्यता से शासन चलया। सुव्यवस्थित शासन, राजनीतिक सूझबूझ, सहिष्णु धार्मिकता, प्रजा के हितचिंतन, दान पुण्य तथा तीर्थस्थानों में भवननिर्माण के लिए ने विख्यात हैं। उन्होंने महेश्वर को नवीन भवनों से अलंकृत किया। सन् 1795 में उनके देहांत के पश्चात् तुकोजी होल्कर ने तीन वर्ष तक शासन किया। तदुपरांत उत्तराधिकार के लिए संघर्ष होने पर, अमीरखाँ तथा पिंडारियों की सहायता से यशवंतराव होल्कर इंदौर के शासक बने। पूना पर प्रभाव स्थापित करने की महत्वाकांक्षा के कारण उनके और दोलतराव सिंधिया के बीच प्रतिद्वंद्विता उत्पन्न हो गई, जिसके भयंकर परिणाम हुए। मालवा की सुरक्षा जाती रही। मराठा संघ निर्बल तथा असंगठित हो गया। अंत में होल्कर ने सिंधिया और पेशवा को हराकर पूना पर अधिकार कर लिया। भयभीत होकर बाजीराव द्वितीय ने 1802 में बेसीन में अंग्रेजों से अपमानजनक संधि कर ली जो द्वितीय आंग्ल-मराठा युद्ध का कारण बनी। प्रारंभ में होल्कर ने अंग्रेजों को हराया और परेशान किया पर अंत में परास्त होकर राजपुरघाट में संधि कर ली, जिससे उन्हें विशेष हानि न हुई। 1811 में यशवंतराव की मृत्यु हो गई।
अंतिम आंग्ल-मराठा युद्ध में परास्त होकर मल्हारराव द्वितीय को 1818 में मंदसौर की अपमानजनक संधि स्वीकार करनी पड़ी। इस संधि से इंदौर राज्य सदा के लिए पंगु बन गया। गदर में तुकोजी द्वितीय अंग्रेजी के प्रति वफादार रहे। उन्होंने तथा उनके उत्तराधिकारियों ने अंग्रेजों की डाक, तार, सड़क, रेल, व्यापारकर आदि योजनाओं को सफल बनाने में पूर्ण सहयोग दिया। 1902 से अंग्रेजों के सिक्के होल्कर राज्य में चलने लगे। 1948 में अन्य देशी राज्यों की भाँति इंदौर भी स्वतंत्र भारत का अभिन्न अंग बन गया और महाराज होल्कर को निजी कोष प्राप्त हुआ।
अहिल्याबाई
1724 ई. में मराठा राज्य के पेशवा (प्रधानमंत्री) बाजीराव
प्रथम ने मल्हारराव होल्कर को 500 घुड़सवार सैनिकों की कमान सौंपी
और जल्दी ही वह मालवा में पेशवा के प्रधान सेनापति बन गये, जिसका मुख्यालय 'महेश्वर' व 'इन्दौर' में था। 1766 ई. में मृत्यु होने तक मल्हारराव
मालवा के वास्तविक शासक थे। 1767 से 1794 ई. तक उनके
पुत्र खाण्डेराव की विधवा अहिल्याबाई होल्कर ने बहुत कुशलता और योग्यतापूर्वक
राज्य का शासन चलाया। हिंसा के सागर में इन्दौर समृद्धि तथा शान्ति का सागर था और
अहिल्याबाई के शासन, न्याय व
बुद्धि के लिए विख्यात था। उन्होंने अनेक मंदिरों का पुनरुद्धार करवाया, जिसमे
द्वारिका (गुजरात) का श्री कृष्ण मंदिर तथा गंगा किनरे अवस्थित काशी-विश्वनाथ
मंदिर प्रमुख है | उन्होंने अपने दूर के
सम्बन्धी तुकोजी होल्कर को अपना सेनापति नियुक्त किया था, जो दो वर्ष बाद अहिल्याबाई होल्कर
की मृत्यु होने पर उनके उत्तराधिकारी बने। 1797 ई. में तुकोजी होल्कर के नाजायज़ बेटे
जसवन्तराव ने सत्ता पर क़ब्ज़ा कर लिया।
अंग्रेज़ों
की अधीनता
1803 में दूसरा मराठा युद्ध छिड़ने पर जसवन्तराव तटस्थ रहे, लेकिन 1804 ई. में सिंधिया (मराठा
महासंघ की एक रियासत) की पराजय के बाद उन्होंने ब्रिटिश सेना पर हमला किया और दिल्ली को घेर लिया। लेकिन नवम्बर, 1804 ई. में डीग और फ़र्रुख़ाबाद में उनकी सेनाएँ हार गईं और एक वर्ष बाद उन्होंने अंग्रेज़ों समझौता कर लिया। अंग्रेजी राज में इन्हें 19 बन्दुक की सलामी
की पदवी मिली हुई थी | इसके बाद वह विक्षिप्त हो गये और 1811 ई. में उनकी मृत्यु हो गई।
विवादों और पदत्यागों से जूझते 'होल्कर वंश' का शासन 1947 ई. में देश के आज़ाद होने और राज्य के अलग अस्तित्व की समाप्ति
तक चलता रहा। यशवंतराव द्वितीय (शासन: 1926-1948) ने 1947 में भारत की आजादी तक इंदौर राज्य पर शासन किया। इंदौर को मध्य प्रदेश में 1956 में विलय कर दिया गया।
यशवंत राव होलकर
इंदौर के होलकर महाराजा[संपादित करें]
- मल्हार राव होलकर प्रथम (शासन: २ नवंबर १७३१ से १९ मई १७६६)
- मालेराव होलकर (शासन: २३ अगस्त १७६६ से ५ अप्रैल १७६७)
- अहिल्यबाई होलकर (शासन: २७ मार्च १७६७ से १३ अगस्त १७९५)
- तुकोजीराव होलकर (शासन: १३ अगस्त १७९५ से २९ जनवरी १७९७)
- काशीराव होलकर (शासन: २९ जनवरी १७९७ से १७९८)
- यशवंतराव होलकर प्रथम (शासन: १७९८ से २७ अक्टूबर १८११)
- मल्हार राव होलकर तृतीय (शासन: २७ अक्टूबर १८११ से २७ अक्टूबर १८३३)
- मार्तण्डराव होलकर (शासन: १७ जनवरी १८३४ से २ फ़रवरी १८३४)
- हरिराव होलकर (शासन: १७ अप्रैल १८३४ से २४ अक्टूबर १८३४)
- खांडेराव होलकर तृतीय (शासन: १३ नवंबर १८४३ से १७ फ़रवरी १८४४)
- तुकोजीराव होलकर द्वितीय (शासन: २७ जून १८४४ से १७ जून १८८६)
- शिवाजीराव होलकर (शासन: १७ जून १८८६ से ३१ जनवरी १९०३)
- तुकोजीराव होलकर तृतीय (शासन: ३१ जनवरी १९०३ से २६ फ़रवरी १९२६)
- यशवंतराव होलकर द्वितीय (शासन: २६ फ़रवरी १९२६ से १९४८)
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बहुत अच्छी पहल।यादवी राजसत्ता उसकी वीरता और उदारता से परिचय कराने हेतु।
जवाब देंहटाएंYe Yadav riyasat Nahi hai inme se koi bhi apne aap ko Yadav Nahi maante Jadaun, Jadeja or bhati ye real Yaduvanshi hai Yadav Yaduvanshi Nahi hai 1910 me ahir,ghosi,gop aadi jatiyo me Yadav mahasabha Ka gatan Kiya or khud ko Sri Krishna Ka vansaj bta Diya issue pahle ye abhi bhi Yaduvanshi Nahi lagate the
जवाब देंहटाएंSach to ye hai ki sabhi manav se janm liye aur manav hai.ek bhikhari jati bramhan sreth kaise ho skate hai .
हटाएंजब तक हम लोग खुद को गो पालक ( ग्वाल) से नही जोड़ेगे तोह ना तोह आर्य बनेगे ना यदुवंशी, क्यो की आर्य और यदुवंशी दोनों पशुपालक खास कर गौ पालक ही थे, ये मै नही वेद, उपनिषद्, महाभारत और पुराण बोलते है. सभी रिसर्च टीम चाहे विदेशी या देसी भी यही बताते है.
हटाएंकिसी वंश या मूल को बताने वाले भारतीय मानव विज्ञान सर्वेक्षण टीम भी यदुवंशी को गो-पालक ही बताते है
गो पालक( ग्वाल) मूल रूप से यदुवंशी मूल के थे
Anthropological Survey of Bombay
https://books.google.co.in/books?id=_uUXAQAAIAAJ&dq=yadavas+of+mahabharata+were+cowherd&focus=searchwithinvolume&q=yadavas+cowherd
Link:
The Journal of the Anthropological Society of Bombay, Volume 14
https://books.google.co.in/books?id=qtgZAAAAMAAJ&dq=yadavas+of+mahabharata+were+cowherd&focus=searchwithinvolume&q=Yadavas
3. Indian Moseume report
महाभारत के यदुवंशी वैष्णव संप्रदाय को मानते थे, अपने पेशे से गोप ( गो पालक) थे
https://books.google.co.in/books?id=1HABAAAAMAAJ&q=abhira+yadavas&dq=abhira+yadavas&hl=en&sa=X&ved=2ahUKEwiysY2I0vjtAhWbSH0KHc0dB-Y4ChDoATAEegQIBBAC
जय यदुवन्श
जवाब देंहटाएंयादवो का बहुत ही गौरवपूर्न इतिहास रहा है
जवाब देंहटाएंये यादव नहीं हो सकते गायकवाड़ sc में आते हैं जबकि यादव obc में
जवाब देंहटाएंसई कहा इस कहानी का राइटर मूर्ख है हम चंद्रवशी नहीं नागवंशी है हम शेष नागराजा के वंशज है
हटाएंजातीबाद सै ऊपर उठकर देखै तो हमारे लिय गोरब साली ओर गर्व की बात होगी की यै महान हिन्दू सम्राट थे हमारै इति हास कारो नै हमारै राजाओ की जाती सूचक उल्लैख कर हिन्दूओ मै कटुता फैलानै का कम किया है जबकी मुस्लिम नबाब ओर राजाओ की जात न लिखकर उन्है मात्र मुस्लिम लिखा है इससै हमै ऊबरना होगा नही तो भारत का भाबी इतीहास हमै माफ नही क्ररैगाराजा सूहैल देब पासी बीर बल्लाल जैसे बीरो की बीरता जातीबाद मै कैद होकर रह गई
जवाब देंहटाएंहम चन्द्रवंशी नहीं नागवंशी है हम शेष नागराजा
जवाब देंहटाएंके वंशज है
हम चन्द्रवंशी नहीं नागवंशी है हम शेष नागराजा
जवाब देंहटाएंके वंशज है इतिहास ठीख से लिखो